राजस्थानी कहावता (अ - अ:)
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अ
अंधाधुंध की साहबी, घटाटोप को राज।
आअंबर कै थेगलीं कोनी लागै। अक्कल उधारी कोनी मिलै अक्कल कोई कै बाप की कोनी। अक्कल बड़ी के भैंस अक्कल बिना ऊँट उभाणा फिरै। अक्कल में खुदा पिछाणो। अक्खा रोहण बायरी, राखी सरबन न होय। अगष्त ऊगा, मेह पूगा। अग्गमबुद्धि बाणियो, पिच्छमबुद्धि जाट। अग्रे अग्रे ब्राह्मणा, नदी नाला बरजन्ते। अजमेर को घालणिया नै चेरासाई त्यार है। अटक्यो बोरो उधार दे। अठे किसा काचर खाय है? अठे गुड़ गीलो कोनी अथवा इसो गुड़ गीलो कोनी। अठे चाय जैंकी उठे बी चाय। अठे ही रेवड़ को रिवाड़ो, अठे ही भेड्या री घुरी। अणीचूकी धार मारी अणदोखी ने दोख, बीनै गति न मोख। अणमांग्या मोती मिलै, मांगी मिलै न भीख। अणमिले का सै जती हैं। अणसमझ को कुछ नहीं, समझदार की मौत। अदपढ़ी विद्या धुवै चिंत्या धुवे सरीर। अनहोणी होणी नहीं, होणी होय सो होय। अनिर्यूं नाचै, अनिर्यूं कूदै, अनिर्यूं तोड़ै तान। अब तो बीरा तन्नै कैगो जिकोई मन्ने कैगो। अबे तबे का एक रूपैया, अठे कठे का आना बार अभागियो टाबर त्युंहार नै रूसै। अमरो तो मैं मरतो देख्यो, भाजत देख्यो सूरो अम्मर को तारो हाथ सै कोनी टूटै। अमर पीलो में सीलो। अर्य्या ही रांड रोला करसी र अय्यां ही पावणां जीमबो करसी। अरजन जसा ही फरजन। अरडावतां ऊंट लदै। अल्ला अल्ला खैर सल्ला असलेखा बूठां, बैदां घरे बधावणा। असवार को को थी ना पण ठाडां कर दी। असाई म्हे असाई म्हारा सगा, असी रातां का अस्स ही तड़का। असो भगवान्यू भोलो कोनी जको भूखो भैसां में जाय। अस्सी बरस पूरा हुया तो बी मन फेरां में रह्या। अहारे ब्योहारे लज्जा न कारे।
आँख कान को च्यार आंगल को फरक है।
इआंख गई संसार गयो, कान गयां हंकार गयो। आख फड़के दहणी, लात घमूका सहणी। आंख फड़ूकै बांई, के बीर मिले के सांई। आंख फुड़ाई मूंड मुंडायो, घर को फेर्यो द्वार। आंख मीच्यां अंधेरो होय। आंख्यां देखी परसराम, कदे न झूठी होय। आंख्यां में गीड पड़ै, नांव मिरगानैणी। आंख्यां सै आंधो, नांव नैणसुख। आंगल्यां सूं नूं परै कोनी हुवै। आंट में आयोड़ो लो टूटै। आंटै आई मैरे बिलाई। आं तिला में तेल कोनी आंधा आगे ढोल बाजै, आ डमडमी क्यां की? आंधा भागे रोवै, अपना दीदा खोवै। आंधा की गफ्फी, बहरा को बटको अंधा की माखी राम उड़ावै आंधा नै तो लाठी चाये आंधा पीसै कुत्ता खाय आंधा में काणो राव आंधा सुसरा में क्योंकी लाज? आंधी आई ही कोनी, सूसंटा पैली ही माचगो आंधी भैस बरू में चरै आंधी मा पूत को माथो नोज देखै। आंधै कै भांवै किंवाड़ ई पापड़। आंधों के जाणै सावण की भार। आंधो बांटै सीरणी, घरकां नै ही दे; आई रुत खेती, क्यूं करै पछैती। आई ही छाय नै, घर की धिराणी बण बैठी। आए लाडी आरो घालां, कह पूंछ ई आरै में तुड़ाई है। आक़ को कीड़ो आक में, ढाक को कीड़ो ढाक में। आक में ईख, फोग में जीरो। आक सींचै पण पीपल कोनी सींचै। आकास में बिजली चिमकै, गधेड़ो लात बावै। आकाश में थूकै जणा आपके ई मूं पर पड़ै। आखर रामजी कै घर न्याव है। आगली दाल नै ई पाणी कोनी। आगलै सै पाछलो भलो। आगऐ आग न गैल्यां पाणी। आगे आग न पीछै भींटकी आगै मांडै पाछै दे, घट्या बध्या कागद सैं ले। आगो थारो, पीछो म्हारो। आ छाय तो ढोलबा जोगी ही थी। आज मरां काल मरां, मर्या मर्या फिरां आज मर्यो दिन दूसरो जो गया सो गया। आज मरै जकै ने काल कद आवै। आज हमां अर काल थमां। आज ही मोडियो मूंड मूंडायो आज ही ओला पड्या। आटो कांटो घी घड़ो, खुल्लै केसां नार। आठ पूरबिया नो चूल्हा। आडा आया, मा का जाया। आडू कै तो खाय मरै, कै उठा मरै। आडू चाल्या, हाट, न ताखड़ी न बाट। आडै दिन सै बास्योड़ो ही चोखो। आँण गाँव को बींद र गांव को छोरा। आत्मा सो परमात्मा आथणवचाई को मेह अर पावणूं आयो रहै। आदम्यां की माया, बिरखां की छाया। आदरा बाजै बाये, झूंपड़ी झोला खाय। आदरा भरै खाबड़ा, पुनबसु भरै तलाव। आदै पाणी न्याव होय। आधाक सोवै, आधाक जागे, जद बातां का रंग दोराई लागै। आधा में देई देवता, आधा में खेतरपाल। आधी छोड़ एक नै धावै, बाकी आदी मुंह से जावै। आधे जेठ अमाव्साय रवि आथिमतो जोय। आधै माह कांधे कामल बाह। आधो घाल्यो ऊँखली, आधो घाल्यो छाज। सांगर साटै घण गई, मघरो मघरो राज। आधो धरती में, आधो बारणै। आ नई काया सोने की, बार बार नहीं होणै की। आप आपकी मूंछो कै सै ताव दे हैं। आप आपकी रोट्यां नीचे सै आंच देवै। आप आपके दाणै पाणी मे मसत है। आप आपको जी सै नैं प्यारो। आप कमाया कामड़ा, दई न दीजै दोस। आपका फाड्या की सै बुझावै आपकी एक फूटी को दुख कोनी, पड़ोसी को दोनों फूटी चाये। आपकी खोल में सै मस्त। आपकी गयां को दुख कोनी, जेठ की रह्यां को दुख है। आपकी गली में कुत्ता नार। आप की चाय गधा नै बाप बणावै। आपकी छाय नै कोइ काटी कोनी बतावै। आपकी छोड़ पराई तक्कै, आवै ओसर कै धक्कै। आपकी जांघ उघाड्यां आप ही लाजां मरै। आपकी पराई और पराई आपकी आपकी मां ने डाकण कुण बतावै ? आपके लागै हीक में, दूसरो के लागे भीत में। आपको कोढ़ सांमर सामर ओढ़। आपको ठको टको दूसरै को टको टकुलड़ी। आपको बिगाड़यां बिना दूसरां को कोनी सुधरै। आपको सो आपको और बिराणू लोग। आपको हाथ जगन्नाथ ! आप गरुजी कातर मारै, चेलां नै परमोद सिखावै। आप डुबन्तो पांडियो ले डूब्यो जजमान। आपनै उपजै कोनी, दूसरां की मानै कोनी। आप भलो तो जग भलो। आप मर्यां जुग परलै। आप मर्या बिना सुरग कठै ? आप में अक्कल घणी दीखै, दूसरै कनै घन घणूं दीखै। आबरू लैर उधार दै। आ बलद मनै मार। आभ के अणी नहीं, वेश्या के धणी नहीं। आभा की सी बीजली, होली की सी झल। आभा राता मेह माता, आभा पीला मे सीला। आम काणा का पेड़ गिणना? आम नींबू बाणियो, कंठ भींच्यां जाणियो। आम फलै नीचो नवै, अरंड आकासां जाय। आया ही समाई पण गया की समाई कोनी। आयी गूगा जांटी, बकरी दूधां नाटी। आयो चैत निवायो फूडां मैल गंवायो। आयो रात, गयो परभात। आरिषड़ा सबब जोय कर समय बताऊँ तोय। भादूड़ो जुग रेलसी छठ अनुराधा होय। आ रै मेरा सम्पटपाट! मैं तनै चाटूं, मनै चाट। और राड्या राड कराँ, ठाला बैठ्या के कराँ। आल के भाव को के बेरो। आल पड़ै तो खेलुं मालूं, सूक पड़ै घर जाऊँ। आला बंचै न आपसै, सूका बंचै न कोई कै बाप सैं। आ ले पड़ोसण झूंपड़ी, नित उठ करती राड़। आधो बगड़ बुहारती, सारो बगड़ बुहार। आवो मीयां खाणा खावो, बिसमिल्ला झट हाथ धुवावो। आवो मीयां छान उठावो, हम बूढ़ा कोई ज्वान बुलावो।। आसवाणी, भागवाणी। आसाडां धुर अस्टमी, चन्द सेवराछाय। च्यार मास चूतो रहै, जिउं भांडै रै राय। आसाडे धुर अष्टमी, चन्द उगन्तो जोय। कालो वै तो करवरो, घोलो वै तो सुगाल। जे चंदो निरमल हुवै तो पड़ै अचिन्तो काल। आसाडे सुद नवी नै बादल ना बीज। हलड़ फाडो ईंधन करो, बैठा चाबो बीज। आसाढ़ै सुद नोमी, घण बादल घण बीज। कोठा खेर खंखेर दो, राखो बलद ने बीज। आसी च्यानण छठ, ताकर मरसी पट। रू आयी चांदा छठ, कातरो मरसी पट। आ सुन्दर मन्दर चलां तो बिन रह्यो न जाय। माता देवी आसकां, बै दिन पूंच्या आय।। आसू जितरै मेह। आसोजां का पड़या तावड़ा, जोगी होगा जाट। आसोज्यां में पिछवा चाली, भर भर गाडा ल्याई। आसोजी रा मेहड़ा, दोय बात बिनास। बोरटियां बोर नहीं, बिणयाँ नहीं कपास।
इकलक के दोलक कै (इ क लग के अर दो लग कै)
ईइजगर पूछै बिजगरा, कहा करत हो मिन्त। पड्या रहां हां धूल में, हरी करते है चिंत।। इज्जत की लहजत ही और हुवै है इज्जत भरम की अर कमाई कमर की। इन्दर की मा भी तिसाई ही रही। इन्नै पड़ै को कुवो, उन्नै पड़ै तो खाई। इब ताणी तो बेटी बाप कै ही है। इब पछतायां के बणै द चिड़िया चुग गई खेत। इमरत तो रत्ती ही चोखो, झैर मण भी के काम को। इसी खाट इस्या ही पाया, इस रांड इस्या ही जाया। इसै परथवां का इसा ही गीत। इसो ई तेरो खाणू दाणूं, इसो ई तेरो काम कराणुं। इसो ई हरि गुण गायो, ईसो ई संख बजायो। इस्समी खाण का इसा ही हीरा, इसी भैण का इसा ही बीरा।
ई की मा तो ई नै ही जायो।
ईसरो रो परमेसरो। ईसानी बीसानी।
उ
उघाड़ै वारणै धाड़ नहीं, उजाड़ गांव में राड़ नहीं।
उझल्या समदरा ना डटै। उठे का मुरदा उठे बलैगा अठे का अठे। उणीं गांव में पीर उणी में सासरो उतर भैंस मेरी बारी। उतारदी लोई, के करैगो कोई। उत्तर पातर, मैं मियां तू चाकर उललतै पालड़ै को कोई भी सीरी कोनी। उल्टी गत गोपाल की, गई सिटल्लु मांय उल्टो चोर कोतवाल नै डंडै। उल्टो दिन बूझ कर कोनी लागै। उल्टो पाणी चीलां चढ़ै।
ऊ
ऊंखली में सिर दे जिको धमकां सैं के डरै।
एऊंधै ही अर बिछायो लाद्यो ऊँचै गड का ऊंचा कांगरा ऊँचै चढ़ कर देखो, घर घ यो ही लेखो। ऊँचे चढ़ चढ़ डोली डाकै, मरद नै थापै। राधो चेतो यूं कहै, थक्यां रहैगी आपै। ऊँचो नाग चढ़ै तर ओड़े, दिस पिछमांण बादला दौड़े। ऊँट कै मूं में जीरै सै के हुवै? ऊँट को पाद धरती को न आकास को ऊँट को रोग रैबारी जाणै ऊँट खो ज्याय तो टोपली उतार लिये। ऊँट चढ्या नै कुत्तो खाय। ऊँटां नै सुहाल्यां सै के होय। ऊंदरी को जायो बिल ही खोदै। ऊं बात नै घोड़ा ई को नावड़ै ना। ऊलै गैले चालै, खत्ता खाय। ऊजड़ खेड़ा फिर बसै, निरधनियां धन होय। जोबन गयो न बावड़ै मतना द्यो थे खोय। ऊत गये की चिट्ठी आई, बांचै जीनै राम दुहाई। ऊत गयो दक्खन, उठे का ल्यायो लक्खन। ऊत गांव में अरंड ही रूंख। ऊत गांव में कुम्हारा ही महतो। ऊतां कै के सींग होय है। ऊदलती का किस दायजा? ऊपर तो लहर्यो पण नीचे के पहर्यो। ऊबर बागा, घर में नागा। ऊपर राम चढ्यो देखै है। ऊबो मूतै सूत्यो खाय, जैंको दालद कदे न जाय। ऊमस कर घृत माढ गमावे, झांड कीड़ी बहार लावे। नीर बिनां चिडियां रज न्हावै, तो मेह बरसे धर मांह न मावै।
एक आंख को के मीचै के खोलै।
एक आदर्यो हाथ लग ज्याय पछै तो करसो राजी। एक ई बेल का तूमड़ा है। एक करोट की रोटी बल उठै। एक कांजी को टोपो दूध की भरी झाकरी नै बिगाड़ दे। एक फांणू एक खोड़ो, राम मिलायो जोडो। एक घर तो डाकण ही टालै है। एक घर में बहुमता र जड़ामलु सै जाय। एक चणो दो दाल एक जणैं की हलाई डोर हालै। एक जाड़ खाय, एक जाड़ तरसै। एक टको मेरी गांठी, मगद खांऊं क मांठी। एक दिन पावणूं, दूजै दिन अनखावणो, तीजै दिन बाप को मुंघावणूं। एक नन्नो सो दुख हड़ै। एक पहिये सैं गाड़ी कौन्या चालै। एक पग उठावै अर दूसरै की आस कोनी। एक पती बिन पाव रती एक पीसा की पैदा नहीं, र घडी की फुरसत नहीं। एक पैड वाली कोन्यारङ बाबा तिसाई। एक बांदरी कै रूस्यां के अयोध्यां खाली हो ज्यासी। एक बार योगी, दो बार भोगी, तीन बार रोगी। एक भेड़ कुवै में पड़ै तो सै जा पड़ै एक म्यान में दो तलवार कोनी खटावै। एक रती बिन पाव रती को। एक लरड़ी तूगी जद के हुयो। एकली लकड़ी ना जलैङर नाय उजालो होय। एक सैं दो भला एक सो एक अर दो सो दो एक हल हत्या, दो हल काज, तीन हल खेती, च्यार हल राज। एक हाथ में घोडो, एक हाथ में गधो है। एक हाथ लील में, एक हाथ कसूमा में। एक हाथ सै ताली कोनी बाजै।
ऐ
ऐं बाई नै घर घणा।
ऐ घर घोड़ी आपणा, बा छी बीकानेर। घास घणेरो घालस्यां, बांणू द्यूं ना सेर। ऐरण की चोरी करी, कर्यो सुई को दान। ऊपर चढ़ कर देखण लाग्यो, कद आवै बीमाण। ऐ विधनारा अंक, राई घटै न राजिया। ऐसा को तैसा मिल्या, बामण को नाई। बो दीना आसकां, बो आरसी दिखाई।
ओ
ओई पूत पटेलां में, ओई गोबर भारा में।
ओ क्यां टो टाबर ? खाय बराबर। ओगड़ बेटो क्यांसू मोटो, लावो गिणै न टोटो। ओछ की प्रीत कटारी को मरबो। ओछी गोडी नेसकड़, बहै उलाला बग्ग। बो ओठी बो करलहो, आयण होय अलग्ग। ओछी पूंजी घणै नै खाय। ओछी पोटी में मोटी बात कोनी खटावै। ओछै की प्रीत, बालू की सी भींत। ओछै की मातैगगी, चाकी मांलो बास। ओछो बोरो, गोदो को छोरो, बिना मुरै की सांड, नातै कीरांड कदेई न्ह्याल कोनी करै। ओडी भली न टोडी भली, खुल्लै केंसा नार। ओस चाट्यां कसो पेट भरै। ओसर चूक्या नै मोसर नहीं मिलै। ओसर चूकी डूमणी, गावै आलपताल। ओसां सै घड़ियो कोनी भरै। ओ ही काल तो पड़बो, ओ ही बाप को मरबो। औ और तो नार पड़्यो है पण काम में डबको। और सदा सूतो भलो ऊभो भणो असाढ़। और सब सांग आ ज्मायं, बोरै वालो सांग कोन्या आवै। |
Saturday, December 12, 2015
राजस्थानी कहावता
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