Saturday, December 12, 2015

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राजस्थान री प्रमुख जनजातियाँ

राजस्थान री प्रमुख जनजातियाँ

राजस्थान रे इतिहास मे जनजातियो रो बहोत महत्त्वपूर्ण स्थान है। राजस्थान मे आदिमकाल सु जनजतियो रो मूल निवास रह्यो है। राजस्थान री पवित्र और पुण्य भूमि रा रक्षक आदिवासी लोग ही है। मीणा जनजाति रो इतिहास गौरव गाथा सु भरियोडो है।

करौली रो इतिहास मीणो री गौरव गाथा सु भरिजोडो है। एतिहासिक प्रमाणो रे आधार पर भील लोग ही दक्षिण व दक्षिण - पूर्वी राजस्थान रा मूल निवासी था। भीलो ने पराजित कर ही राजपूत आप रा राज्य स्थापित करिया। बांसवाडा मे बंसिया भील,कुशलगढ मे कुशला भील ,डूँगरपुर मे डूँगरिया भील ,कोटा मे कोटिया भील रो शासन थो।

2001 री जनगणना रे आधार पर राजस्थान मे जनजातियो री जनसंख्या राज्य री कुल जनसंख्या री 12.44 प्रतिशत है,जबकि भारत मे जनसंख्या रो 8.08 प्रतिशत ही है।

राजस्थान मे अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या री दृष्टि सु देश मे छठो स्थान है।
2001 री जनस्ंाख्या रे अनुसार सबसु अधिक जनजातियो रा लोग बाँसवाडा मे जबकि सबसु कम बीकानेर जिले मे निवास करे है।
जनजातियो रो भोगौलिक वितरण
भोगौलिक वितरण री दृष्टि सु राजस्थान मे जनजातियो ने निम्नलिखित तीन क्षेत्रो मे विभाजित करियो गयो है।
  1. पूर्वी एवं दक्षिणी पूर्वी क्षेत्र - इणमे करौली,सवाई माधोपुर,दौसा,अलवर ,भरतपुर ,जयपुर , अजमेर ,भीलवाडा,टोंक कोटा,बारां,बूँदी,झालावाड जिला आवे है।ओ क्षेत्र मीणा जनजाति बाहुल्य क्षेत्र है। इ क्षेत्र मे मुख्य रुप सु भील,मीणा ,सहरिया,और सांसी जनजातियाँ है।इ क्षेत्र री जनजाति जनसंख्या 10.40 प्रतिशत है।
  2. दक्षिणी क्षेत्र - इ क्षेत्र मे बाँसवाडा ,डूँगरपुर,उदयपुर ,सिरोही,राजसमन्द और चित्तौडगढ आदि जिला आवे है। अटे राजस्थान री कुल जनजातियो री 57 प्रतिशत जनसंख्या निवास करे है।ओ भील जनजाति री बहुलता वाळो क्षेत्र है।
  3. उत्तर पश्चिमी क्षेत्र - इरे अन्तर्गत राजस्थान रा सीकर ,झुन्झुनूं ,चुरु,जोधपुर पाली,बीकानेर ,जैसलमेर ,बाडमेर,नागौर,हनुमानगढ़ ,गंगानगर और जालोर,जिला सम्मिलित है। इ तरह पश्चिम राजस्थान रे शुष्क एवं अर्द्धशुष्क प्रदेश रे 12 जिलो मे राजस्थान री लगभग 7.14 प्रतिशत जनजातियाँ निवास करे है।
1) मीणा 

मीणा रो मतलब मत्स्य या मछली है। मीणाओ रो उल्लेख मत्स्य पुराण मे मिले है। पौराणिक मान्यताओ रे अनुसार इयाने मत्स्यावतार रो रुप मानिजे है।
राजस्थान मे मीणो रो शासन थो और ए राजस्थान रा मुल निवासी है । मीणा जाति रा दो वर्ग है जमींदार मीणा व चौकीदार मीणा पण दोनु वर्गो मे भेदभाव नही है,दोनो वर्गो मे घनिष्ठ सम्बन्ध है।
आचार्य मुनिमगर सागर द्वारा रचित मीणा पुराण रे एक श्लोक सु मीणा रे 5200 गोत्र होणे री जानकारी मिले है।प्रमुख मीणा जनजाति निम्न लिखित है।
  1. जमींदंरचौकीदार -
    जमींदंार मीणा श्रेष्ठ उत्तम श्रेणी मे आवे है।इयारो प्रमुख व्यवसाय - खेती , पशु पालन ,सरकारी सेवा है।जबकि चौकीदार मीणा राजाओ रे महलो रा कोषागारो आदि रा रक्षक था।वर्तमान मे शिक्षा रे प्रचार प्रसार रे कारण कोई वर्गभेद नही है।
  2. पुराणवासीनयावासी -
    पुराणवासी मीणा प्राचीन समय सु बसियोडा है।जबकि नया वासी बाद मे बसिया है।
  3. पडियारमीणा -
    जनश्रुतियो रे अनुसार ए भैंस (पाडे) रो मांस खावता हा।
  4. रावतमीणा -
    ए मीणा सवर्ण राजपूतो सु सम्बन्धित माना जावे है और अजमेर जिले मे सबसु ज्यादा है।
मीणा जाति मे संयुक्त परिवार री प्रथा प्रचलित है।
मीणा जाति मे पंचायत रे मुखिया ने पटेल केविजे है और पटेल रो पद वंशानुगत है। प्रमुख पटेलो मे मुमचन्द पटेल ,प्रभु पटेल ,सुम्बल पटेल और श्री लाल पटेल आवे है।

(2) भील

आ राजस्थान री दुसरी प्रमुख जनजाति है।
राज्य मे भील उदयपुर (सबसु ज्यादा ) ,बांसवाडा ,डूंगरपुर ,सिरोही और चित्तौडगढ़ जिलो मे निवास करे है।
भील शब्द रो अर्थ है- तीर चलाणे वाळो व्यक्ति कई लोग इयाने वनपुत्र रे नाम सु सम्बोधित करे है। कई पुस्तको मे भीलो रो आदिम मूल निवास मारवाड बतैओ है ।
भीलो मे गांव रे मुखिया ने गमेती केविजे है।गमेती रो पद वंशानुगत होवे है। भील समाज गमेती ने सम्मान देवे है।
भीलो रे घर ने कू केविजे है औैर कई सारा कू मिल र पाल कहलावे है । पाल रो मुखिया पालकी कहलावे है।
भीलो रो मुख्य भोजन मक्के री रोटी और कांदो रो भात है।
भील केसरियानाथ रे चढ़ी केसर पाणी पी कदई झूठ नही बोले।
भील क्षेत्रो मे पहाडी ढ़ालो पर करी जाणे वाळी झूमिंग खेती ने चिमाता और मैदानी भागो मे करी जाणे वाळी खेती ने दजिया केविजे है।
भीलो रे गैर नाच मे स्त्री और आदमी अर्द्ध - वर्ताकार मे एक दुसरे रा हाथ पकड कमर
झुकाता नाचे है।
भीलो म ए होली रे समय रात मे कियो जाणे वाळो नेजा नाच मे एक दुसरे रो हाथ पकड कमर झुकाते हुए नाच करे है।
भीलो मे होली रे समय रात मे करीजणे वाळो नेजा नृत्य मे सेमल या खजूर रे पेड रे ऊपर रे भाग पर सफ़ेद या लाल कपडे मे एक रुपयो और नारियल बांध र लटका देवीजे। इ नृत्य मे पेड रे चारो और लुगाईया छडियाँ ले आदमियो ने आगे आणे सु रोके है।छ ः बार आ प्रक्रिया दोहराई जावे है और सातवीं बार लुगाइया लारे हट जावे है।
भीलो मे गवरी नाच रे पहले दिन मुख्य देवता राई बुडिया ने गाँव रे सम्मानीय लोगो सु पोशाक पहना र नृत्य रो श्री गणेश करिजे है।
डूँगरपुर जिले मे बेणेश्वर और घोटियाँ रा भील मेळा प्रसिद्ध है।भीलो रे वास्ते बेणेश्वर रो मेळो जो कि माघ पूर्णीमा ने सोम ,माही एवं जाखम नदियो रे संगम पर आयोजित होवे है,आदिवासियो रो कुम्भ मानो जावे है।

(3) गरासिया 

जनसंख्या री दृष्टि सु आ जनजाति तीसरे स्थान पर आवे है। गरासियाजनजाति चौहाण राजपूतो रा वंशज था।ए मूलत ः बडौदा रे कने चेनपारीज क्षेत्र सु चित्तौड रे निकट आया हा।
राजस्थान मे सर्वाधिक गरासिया जनजाति उदयपुर एवं सिरोही जिलो मे निवास करे है।
गरासियो मे तीन तरह रा ब्याव प्रचलित है- मौर बंधिया ,पहरावना ब्याव और ताणना ब्याव होवे है।

(4) सहरिया

राजस्थान मे सहरिया जनजाति मुख्यत कोटा एवं बारां जिले मे रेवे है। बारां जिले री शाहबाद और किशनगंज तहसीलो मे इयारी संख्या सबसु ज्यादा है।
सहरिया जनजाति रे गाँव शहरोल और इयारा मुखिया कोतवाल कहलावे है।
हाडौती मे भरने वाळो सीताबाडी तेजाजी रो मेळो सहरियाजनजातिरोकुम्भ मानो जावे है।
सहरिया जाति ने भीलो रो ही एक परिवार मानीजे है।

(5) डामोर
डामोर जनजाति डूँगरपुर जिले री सीमलवाडा पंचायत समिति और बांसवाडा जिले मे निवास करे है। डामोर राजस्थान री कुल आदिवासियो रो 0.63 प्रतिशत है।
डामोर जनजाति री जाति पंचायत रे मुखिया ने मुखीकेविजे है।
डामोर जनजाति रे लोगो रे वास्ते छेला बावजी रो मेळो व ग्यारस रो रेवाडी रो मेळो दोनो ही महत्त्वपूर्ण है
(6) कंजर

कंजर एक यायावर प्रकृति री जाति है। जो अपराध वृति रे वास्ते प्रसिद्ध है।कंजर शब्द रो शाब्दिक अर्थ है -जंगलोमेनिवासकरणेवाळा। राजस्थान मे इयारा मुख्य क्षेत्र कोटा ,बारां, बूंदी ,झालावाड ,भीलवाडा,अलवर ,उदयपुर व अजमेर है।
कंजर जाति री सबसु बडी विशेषता इयारी एकता होवे है।
कंजर जाति मे हाकम राजा रा प्याला पी खाई जाणे वाळी कसम रो बहोत महत्त्व होवे है।

(7) सांसी
सांसी जनजाति री उत्पत्ति सांसमल नामक आदमी सु मानी ग़ई है। आ जनजाति भरतपुर जिले मे निवास करे है ।
सांसी जनजाति दो भागो मे विभक्त है जैसे - (1) बीजा (2) माला ।

राजस्थानी व्याकरण

राजस्थानी व्याकरण
(रचनाकार- राजेन्द्र बारा)

भासा अर व्याकरण में लूठो संबंध है। भासा हुवै जइ ई उण री व्याकरण बणीजै। जटै भासा नीं तो व्याकरण कांई री. भासा नैं साचै अर सही रूप मांय ढालणो अर नियमां मांय बांधणै रो काम व्याकरण रो है-जिण सूं भासा में अनुशासन आवै। सब्दां में अनुशासन रैवै। भासा री एकरूपता अर सबद रै सही अरथ सारू व्याकरण आधार है।
"सदां सूं विचार कहणै अर सुणणै रै साधन रो नांव ई भाशा हैं।" कैवणै रो मतलब कै भाशा अभिव्यक्ति रो माध्यम है, सम्प्रेसण रो साधन है। मिनख विचारवान है। आपरै विचारां नै वो बतावै, समझावै, सुणावैं अर दूजा रा विचार सुणै-पढै, लिखै अर समझै। आं स्है बातां सारू भासा ई सबलो साधन है। इयां तोलोग सैनां में ई बात कर सकै है अर समझ सकै है पण सैन सबलो साधन नीं हुवै। फेर सैन अस्पष्ट भी हुवै। बोलणो, सुणणो, लिखणो पढ़णो ी मिनख रै भावां अर विचारां रो सीधो-सादो साधन है। इण वास्तै भासा री जरूरत नै जाणीजी है। दुनियां मांय मोकली भासावां है-संस्कृत, हिंदी, राजस्थानी, अंगरेजी, जर्मन, फ्रेंच आद। आपणै देस मांय ई दरजणां भासा है।
बोली अर भाशा में फरक हुवै "भासा रो क्षेत्रीय रूप ई बोली कहीजै।" बोली हर बा'रा कोस पर बदलै पण भासा नीं। भासा अरब् बोली में थोड़ो सो ई फरक है। बोली रो साहित नीं हुवै। वा फगत बोली जावै। भासा री अक लिपि हुवै, एक साहित्य हुवै। राजस्थानी भासा है, बोली नीं। इणरी लिपी देवनागरी है।(कई भासावां री लिपि देवनागरी है जियां मराठी आद।) अर साहित रो अणथाग भंडार।
"भासा लिखणै रो तरीको लिपि कहीजै।" भासा रा आखर अर उणां रा चितराम उण भासा री लिपि हुवै। हिन्दी, राजस्थानी अर मराठी री लिपि देवनागरी है। उदू री फारसी अर अंग्रेजी री रोमल लिपि है। चोनी भाषा री लिपि आखरां रो नईं हुय'र चितरामां री लिपी है।
"लिपि ई भासा रै ग्यान रो भंड़ार साहित कैयीजै।" साति मांय उण देस अर जाति रै मिनखां रा भाव अर विचार देखण नै मिलै। साहित लिख्योड़ो भी हुय सकै अर जबानी भी। राजा स्थानी रै चारणी साहित रो थोड़ो हिस्सो जवानी भी है। लिख्योड़ै साहित में गद्य अर पद्य दोनूं आवै। पद्य मांय गीत, कवितचा, प्रबन्ध काव्य, खंड काव्य, दूहा, सोरठा, कुंडलियां गजल, नुवीं कविता आदहै। गद्य मांय बात, कहाणी, निबंध, नाटक, एकांकी पत्र, डायरी इन्टरव्यू, रिपोरताज, केरीकेचर आद है।
"व्याकरण वो सास्तर है जिको भासा गरै सरुप संबंधी नियमां री जाणकारी अर उण रो ग्यान करावै।" व्याकरण सबद रो अरथ (वि+आ+करण) सबदां रै शुद्ध रूप रो विवेचन करणो है। व्याकरण सबदां रो अनुशासन है। व्याकरण सीखणो भासा री जाणकारी करमै साथै उण री शुद्धता अर एकरुपता राखण खातर जरूरी हुवै। व्याकरण सीखणै सूं भासा नै बोलणो, लिखणो, समझणो सोरो हुज्यावै अर भासा रै प्रयोग मांय गलती कोनी हुवै। इणी वास्तै व्याकरण रो ग्यान करणो जरूरी है।
वर्ण वा मूल ध्वनि कहीजै जिणरा टुकड़ा नीं हुय सकै। जियां अ, ई इत्यादि। वर्ण सूं सबदां री रचना हुवै, सबांद सूं वाक्यां री। वाक्यां सूं भासा बणै। व्याकरण भासा रै सरूप संबंधी नियमां री जाणकारी देवै अर उण रो ग्यान करावै। व्याकरण भासा री बुणगट रो बखाण करै।
राजस्थानी भासा री वर्णमाला में 49 वर्ण ध्वनियां है जिणा मांय 11 स्वर अर 38 व्यंजन है।
स्वर : अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ ऋ
व्यंजन : क ख ग घ ङ
च छ ज झ ञ
ट ठ ड ढ ण
त थ द ध न
प फ ब भ म
य र ल व व्
श ष स ह
ल ड़
(.)अनुसाव अर (ः) विसर्ग
वर्णमाली री 11 स्वर ध्वनियां में अ, इ, उ, अर ऋ, ह्रस्व स्वर कैवावै। आ, ई, ऊ, ए, ओ,ऐ अर औ सात दीर्ध स्वर कैयीजै।
मुंडै सूं बोलीजण माला स्वर निरनुनासिक कैयीजै अर मुंडै अर नाका दीनुंवां सू बोली जण आला स्वर सानुसनासिक कैयीजै। लिखण में सानुनासिक स्वर री पिछाण वास्तै, स्वर रै ऊपर सादी विदी या चन्द्रबिंदु लगायो जावै-जियां अं पां इ ईं उं ऊं एं ओं औ, अ आं ई ईं ऊं ऊँ आद।
व्यंजन तीन विभागां में बांट्या जावै-स्पर्श, अन्तःस्य, घर्षक। स्पर्ष व्यंजनां रा पांच विभाग हुवै-
क वर्ग ः क ख ग घ ङ
च वर्ग ः च छ ज झ ञ
ट वर्ग ः ट ठ ड ढ ण
त वर्ग ः त थ द ध न
प वर्ग ः प फ ब भ म
य र ल व- अन्तःस्थ व्यंजन है। श ष स ह ल व ड़- घर्षक व्यंजन कैयीजै- शैष स आं में ऊष्म व्यंजन है। वर्गा रा पैला, दूजा वर्ण, श ष स अर विसर्ग-ऐ चवदा वर्ण अघोष कैयीजै; बाकी वर्ण अर्थात्, वर्ग रा तीजा, चोथा अर पांचवां वर्ण य र ल व ल व ह ड तथा अनुस्वार अर स्वर-घोष कैयीजै। वर्ग रा दूजा, चोथा श ष स ह अर विसर्ग-ऐ पन्द्रा महाप्राण कैयीजै बाकी 28 वर्ण अल्पप्राण बाजै।
जिण रीप में वर्ण लिखीजै वा लिपी कैयीजै। राजस्थानी भासा जिण लिपि में लिखीजै वा देवनागरी लिपि बाजै। देवनागरी रै अलावा महाजनी जिणनै व्यापारी काम लैवै। इणरा आखर 'मुड़िया' कैयीजै। इण मांय मात्रावां नीं हुवै। विणज व्योपार में आ चालती। कामदारी लिपि राज रै दफ्तरां में प्रायः कर चालती। मोतीलाल मनारिया 'मुडिया' लिपि रो आविष्कार-कर्ता मुगल सम्राट अकबर रै अर्थ सचिव टोडरमल नै मान्यो है।
देवनागरी लिपि में कई आखर तो दो-दो तीन-तीन तरियां लिखीजै। जियां-
अ = अ ड़ = ड़
ए = ए ण = ण
ऐ = एर = न
ख = ष ल = ल
छ = छ श = श
ज = झत्र = त्न
अनुस्वार - 0
अनुनासिक - ँ
स्वर व्यंजनन रै आगै आवै तो व्यंजन मे मिल जावै। मिलणै सूं उणरो रूप बदल जावै। बदलयौड़ै रूप नै मात्रा कैयीजै। मात्रावां इण तरियां है-
स्वर- अ आ ई उ ऊ ए ओ औ ऋ।
मात्रा -ं ा ि ी ु ू े ै ो ौ 'अ' री कोई मात्रा को हुवैनीं। अ व्यंजन रै ागै आवै जद व्यंजन रो हल् रो चिन्ह आधो कर देवै, जियां-चू + अ = च
मात्रावां स् व्यंजन रा जिका रूप बणै वा 'बारखड़ी' है। 'मात्रा मसेत व्यंजन रा रूपां नै बारखड़ी कैवै।' 'कै' री बारखड़ी इण तरियां हुवै-
क का कि की कु कू के कै को कौ कृ
राजस्थानी में व्यंजन-शिक्षा नै क्को कैयीजै। क इणपद्धति ओ आद्यक्षर हुवणै रै कारणै व्यंजन माला रो पर्याय बणग्यो है। राजस्थानी में ओ ए क महुवारो है-'कक्को ई को जाणै नीं। बिना पढयै-लिख्यै सारू ओ मुहावरो कैयीजै। सीखण सारू प्राचीन पद्य भी बणियोड़ो है। जियां कक्को कोटकडो खक्का खून, चीर्टयो, गग्गा गोरी गाय, घग्गो घटूलियो आद।'
स्वर रै बिना व्यंजन एकोल आवै जद नीचै इसो (्‌्,) चिन्ह लगायीजै। इण चिन्ह नै हल् कैयीजै। व्यंजन रै आगै व्यंजन आवै जद दोतुंवां रो संयोग हुज्यावै। संयोग हुयोड़ा व्यंजना नै संयुक्त व्यंजन या संयुक्त वर्ण अथवा भेला आखर कैवै। संयोग करण में पाइआला आखरां री पाई, अर आधी पाईआला आखरा री आधी पाई, आधो कर देवै। पाई बिना रा व्यंजन आगलै व्यंजना रै ऊपर लिखीजै, जियां-
क् + ख = क्ख
म् + ल = म्ल
न् + य = न्य
ङ् + ग = ङ्ग
द् + व = द्व
कई व्यंजनां रा संयोग हुवणै सूं भोत ई निराला ई रूप हुवै, जियां-
'र' रो पूर्व संयोग
र + म = र्मर + ह = र्ह
र् + च = र्चर् + य = र्य
र् + क = र्क र् + र = र्र
'र' रो पर संयोग
श् + र = श्रह् + र = ह्व
द् + र = द्रढ् + र = ढ
ग + र = ग्रट् + र = ट्र
क् + र = क्रछ् + र = छ्र
प् + र = प्रत् + र = त्र
'य' रो संयोग
ट् + य = ट्य
ड् + य = ड्य
क् + य = क्य
ह +य = ह्य
दूजा वर्णां रो संयोग
ह + ण = ह्ण
क् + ल = क्ल
क् + त = क्त
प् + त = प्त
त् +त = त्त
क् +ष = क्ष
ज् + अ = ज्ञ
स्वर रा दो भेद हुवै- मूल स्वर,संधि स्वर। जइम स्वरां री उत्पत्ति किणी दूजै स्वर सूं नीं हुवै बीं नै मूल स्वर (ह्वस्व) कहीजै। मूल स्वर रै मेल सूं बग्योड़ा स्वर संधि स्वर कहीजै। जिया- आ, ई ए, ऐ, ऐ, आ,े औ।
संधि स्वरां रा दो भेद हुवै-दीर्ध अर संयुक्त। किणो एक मूल स्वर में उणी मूल स्वर रै मिलणै सूं जिको स्वर उत्पन्न हुवै वो दीर्ध स्वर कहीजै- अ + अ = आ, इ + इ = ई
न्यारा न्यारा स्वरां रा मेल सूंजिको स्वर बणै वो संयुक्तस्वर कहीजै अ + इ = ए, अ + उ = ओ।
उच्चारण रै हवालै स्वरां रा दो भेद और हुवै-साननुनासिक निरनुनासिक। जे मुंडै सूं पूरो-पूरो सांस निसार्योजावै तो शुद्ध निरनुनासिक ध्वनि निसरै, पण जे सांस रो कीं भी अंस नाक सूं निसर जाय तो अनुनानिसक ध्वनि निसरै। अनुनासिक स्व रो चिन्ह ँ है। जियां- गाँव, ऊँचो, नांव आद।
उच्चारण रै हवालै व्यंजननां रा भी दो भेद है-अल्प प्राण अर महा प्राण। जिण व्यंजना में हकार री ध्वनि विसेस रूप सूं सुणीजै, बीं नै महाप्राण अर बाकी स्है व्यंजना नां नै अल्प प्राण कहीजै। स्पर्श व्यंजनां में प्रत्येक वर्ण रा दूजा, चौथा आखर उष्म महा ्‌पराण है। जियां- ख, घ, छ, झ, ठ, ढ, थ, ध, फ, भ अर श, ष, स है बाकी स्है व्यंजन अल्प प्राण है। सगला स्वर अल्प प्राण है।
वर्ण रो उच्चारण- मुंडै रै जिण भाग सूं जिण अक्षर रो उच्चारण हुवै बीं नै अक्षर रो स्थान कहीजै। स्थान भेद सूं वर्णा रा नीचै मुजब भेद है-
कंठ्य- जिणां रो उच्चारण कंठ सूं हुवै। जियां- अ, आ, क, ख , ग घ ड़ विसर्ग।
तालव्य- जिणां रो उच्चारण तालवै सूं हुवै। जियां- इ, ई, च, छ, ज झ, ञ, य।
दंत्य- जिणां रो उच्चारण दांत माथै जीभ लगावै सूं हुवै, जियां- त, थ, द, ध, न, ल, स।
मूर्द्धन्य- जिणां रो उच्चारण मूर्द्धा सूं हुवै। जियां-ट,ठ, ड, ढ, ण, र ष
ओष्ठय- जिणां रो उच्चारण होठां सूं हुवै। जियां ऊ, प, फ, ब, भ, म
अनुनासिक-जिणां रो उच्चारण मुंड अर नाक सूं हुवै। जियां- ङ, ञ, ण न म अर अनुस्वार।
कंठता लव्य-जिणां रो उच्चारण कंठ अर तालवै सूं हुवै। जियां -ए ऐ
सबद विचार में सबदां रै भेदां रो, प्रयोगों रो, रूपान्तरां रो अर व्युत्पति रो निरूपण हुवै।
सबदां रा तीन भेद हुवै-संग्या, क्रिया अर अव्यय। पदार्थ रो नाव अथवा विसेसता बतावै वो सबद संग्या कैयीजै। जियां-
टेबल, जैपुर, सोनो, धोलो, ऊपरलो, घणो, च्यार। काम रो करणो हुवणो बतावै वो सबद क्रिया कैयीजै, जयां-करणो, देखणो, आवणो, बोलणो, बांचणो, पढसी बोलै है। जिण सबद में रूपांतर नीं हुवै वो अव्यय कैयीजै।
संग्या अर क्रिया सबदां से रूपांतर हुवै। एक ही सबद रा कई रूप बणै। जियां-
धोलो, धोला, धोली
घोडो, घोड़ा, घोड़ां, घोड़ी, घोड्‌यां
मैं, म्हैं, मनै, म्हां, म्हारो, म्हांसूं
जासी, जावै जांवतो, जावती, गयो, गया
संग्या में जाति, वनच अर विभक्ति रा रुपांतर हुवै, जियां-
जाति : पुलिंग-बकरो काल बो
स्त्रीलिंग बकरी काली बा
वचन : एक वचन-बकरो कालो बो
बहु वचन बकरा काला बै
विभक्ति : पैली : बकरो बकरा
दूसरी : बकरा बकरां
तीजी : बकरै बकरां
सरवनावां संग्या में पुरस रो रूपांतर और हुवै। जियां-
अन्य पुरस बो बा बै
मध्यम पुरस तूं थे आप
उत्तम पुरस मैं (हूं) म्है आप
क्रिया में जाति, वचन, पुरस, काल, वाच्य अर प्रयोग रा रूपांतर हुवै जियां-
जाति : स्त्रीलिंग - आयी करती
पुलिंग - आयो करतो
वचन : एक वचन आयो करती आऊं
बहुवचन- आया रतां आवां
पुरस : अन्य पुरस खावै खावै आसी
मध्य पुरस खावै कावो आस्यो
उत्तम पुरस खावूं खावां आस्यां
काल : वर्तमान डरै आवै
भूत- डरियो आयो
भविष्य- डरैला आवैला
वाच्य : कर्तृवाच्य आवै करै करसी
कर्मवाच्य X करीजै करीजसी
भाव वाच्य-आयीजै X
प्रयोग : बलद भाग्या
बलद फूस चर्यो
बलद सूं उठीजियो कोनी
जिण सबद में रूपांतर नीं हुवै वो अव्यय हुवै, जियां-ऊपरणै आगै, आजकल, कठै, पण अथवा। आगै न्यारा-न्यारा पाठां में संग्या, क्रिया आद रै बारै में विस्तार सूं बतायीजसी।
राजस्थानी भासा में वाक्य रचनी री दीठ सूं वाक्य तीन तरै राह हुवै, यथा-साधारण, मिश्र,संयुक्त। साधारण वाक्य आकार में जादांलंबो नी हुवै। पांच-सात सबदां री वाक्य रचना आम तोर सूं मिलै। इण सूं बडा वाक्य भी मिलै अर छोटा भी। वडा वाक्यां मैं उद्देस्यां अर विधेयां नै विसेसण आद लगा लगू। र बहडा बणाया जा सकै। छोटा वाक्य एक सबद तांई रा भी मिलै। इसा वाक्य आग्या सम्बोधन आद रा मिलै, जियां-आ, जा, उठ, अरै। पण एक सूं जादा सबदां रै वाक्यां रो प्चलण ज्यादा है। जियां-तूं जा, अठै कांई करै, आद।
सामान्य तोर सूं वाक्यां
में सबदां रो स्थान इण तरिया रैवै कर्त्ता, कर्म अर क्रिया। ओ कर्म बदलणै सूं कदै अरत दल जावै। जियां-
घोड़ो घास चरै।
ल्याली बकरी उठावै।
सबद क्रम बदलणै सूं- घास घोड़ो चरै।
बकरी ल्याली उठावै।
पण इयां परसर्ग बिना रै सबहदां में ई हुवै। कर्त्ता अर क्रिया रो स्थान क्रमश वाक्य रैआद अर अन्त में निश्चित है, पण शेष कारक सबदां रो क्रम वाक्य रै बीच में इण तरियां मिलै-
बो हाथ सूं काम करै।
बो थेलै में आम लायो।
द्रिकर्मक क्रिय रै प्रधान अर गौण कर्मां में प्रधान कर्म क्रिया रै नेड़ै हुयै, जियां-
मैं उणनै दो मतीरा दिया।
वाक्य बिना कर्त्ता, कर्म अर कर्‌यि रै भी बणै, जियां-
कर्त्ता बिना-काकड़ो ल्या, मतीरो दे।
कर्म बिना- तूं दे, मैं द्यूं।
क्रिया बिना- च्यार खेत, चोबीस चौबारा।
निजबाचक सर्वनाम पुरस वाचक सर्वनाम रै पछै आवै, जियां-
तूं थारो काम करै।
तूं थारै पापै पूनै लाग।
तू थारै गलै लाग।
विसेसण विसेष्य रै पैलां आवै, जियां-
आ हरी-हरी घास है।
वा कालती बकरी है।
सूकली सेठाणी मरगी।
वै केसरिया पाग बांध मेली है।
विधेय विसेसण विसेष्य रै पछै अर क्रिया सूं पैली आवै। जियां-
घास हरी-हरी है।
बकरी काली है।
पाग केसरिया है।
संख्यावाचक विसेसण संग्या सूं पैलां आवै। जियां-
दस बकर्यां।
पांच ऊंट।
छ मिजमान।
विसेसण री विसेसता बतावण आला सबद विसेसण सूं पैलां आवै-
जियां- जाडी हरी घास।
हलको लाल रंग।
गरो हर्यो रंग।
वर्तमान कालिक अर भूतकालिक कृदन्त विसेसण रूप में प्रयुक्त सूं विसेष्य सूं पैलां आवै, जियां-
रोतो छोरो।
भाजती बकरी।
मरी खाल।
भेव सबद भेदक सबद रै पछै आवै अर परसर्ग दोनुंवां रै बीच में हुवै, जियां-
बिलाई रो बचियो।
सांप रो कांचलो।
क्रिया रा पूरक सबद क्रिया रै पैलां आवैं। जियां-
आछ्यो रहसी।
आधो काम।
पूरो काम।
चोथाई टुकड़़ो।
संयुक्त क्रियावां में प्रधान क्रिया गौण, क्रिया सूं पैली आवै। जियां-
गयो परो।
खा बैठ्यौ।
चाल दियो।
सहायक क्रिया सूं मुख्य क्रिया पैना आवै। जियां-
जावै है।
गयो हुवैला।
आतोहुसी।
स्थानवाचक अर कालवाचक क्रिया विसेसण कर्त्ता सूं पैलां अर पछै प्रयुक्त हुवै, जियां-
उठै तूं रैवै है।
तूं काल जावैलो।
बाकी क्रिया विसेसण विधेय सूं पैली आवै, जियां-
वा होलै पग उठावै है।
वै तावला चालै है।
समुच्चय बोधक अव्वय रा विभाजनक अव्यय दो संबंधित सबदां रा वाक्यां रै बीच में आवै, जियां-
गाय अर बकरी आवै है।
तूं आयो अर मैं गयो।
सांप अर न्योलियो लड़ै है।
तो अर ई उण सबद रै लार आवै जिण माथै जोर दिरीजै, जियां-
मैं तो चालूं।
सांप ई मर्यो हो।
तूं ई गयोहो।
क्रिया माथै जोर-कैय तो दियो
कर्त्ता माथे जोर-ढांढा खेत भेल दियो।
कर्म माथे जोर-रिपड़ा हाथ लागग्या दीखै थारै
करम माथै जोर-हाथ सूं काम करण आलो कदे दुख नीं पावै।
सम्प्रदान माथै जोर-गाय म्हारी है।
अपादान माथै जोर-लेसुवै सैं पत्तो पड्यो
अधिकरण माथै जोर-घर में तौ चूसा कलाबादी खावै है।
राजस्तानी वाक्यां में संग्या सर्वनाम अर विसेसण मांय सूं कोई भी कर्त्ता हुय सकै। जियां-
गाय आयी।
वो गयो।
मोरियो आयो।
निषेषवाचक वाक्या-इसा वाक्यां री रचना विधानार्थक वाक्यां जिसी हुवै। जिणां में निषेषदावक अव्यय इण मुजब रूप में मिलै-
क्रिया सूं पैला आवै, जियां-
वा ऊंट पर नीं बैठै।
क्रिया रै पछै भी आवै, जियां-
तूं जावै मती।
संयुक्त क्रिया में मुख्य अर सहायक क्रिया रै बीच में आवै, जियां- भैंस बकरी मार नीं गेरै।
वाक्य रै सरूपोत में भी आवै, जियां-
न वो जावै न तूं।
प्रश्नवाचक-प्रश्नवाचक वाक्य दो तरै रा हुवै। ेकतो वै जिणां रो जवाब हां नां में हुवै, दूजा वै जिणां रै जबाब ममें किणी बात रो उत्लेख हुवै। पैलडै तरै रा वाक्या री रचना में, जियां-
वो आसी ?
वो आवैलो नीं ?
वोजासी के ?
के तूं जासी ?
दूर्जै प्रकार रै वाक्यां में-
छोरो कांईखावै है ?
भागो कद गयो ?
वो उठैक्यूं जावै ?
घोडो खासी के ?
थे हों कितरा ?
केखायोतूं ?
विस्मयादि बोधक- इसा वाक्य बणावण सारू रै, अर ऐद हैफ रो बोध करावम आला सबद जोड़ीजै-
अरै छोरो कठै गयो !
अर छोरो डूबग्यो !
मिश्र वाक्य
मिश्र वाक्यां में मुख्य उपवाक्य साधारण तोरसूं आश्रित उपवाक्य आवै अर इसा उपवाक्यां रैं बिचालै संयोजक सबद रोप्रयोक करीजै; जियां-
रामलो बोल्यो कै ताई मैं तो छाय लेणनै आयो हूं।
सरबती बोलौ कै दरत थारोल भारी है।
उद्वृत कथनां में आश्रित उपवाक्य मुख्य उपवाक्यां रै पैलां आवै, कियां-
तूं रूप री डली है आ बीरां मांटी कैयी।
विसेसण उपवाक्य मुूख्य उपवाक्यां सूं पैला आवै, जियां-
राम करै सो हुवै।
संयुक्त वाक्य
संयुक्त वाक्य में दो या बेसी प्रधान उपवाक्यां रो क्रम निर्धारित नीं हुवै पण फेर भी जिकी क्रिय काल-कर्म सूं पैली घटित हुवै तत्संबंधित वाक्य पैली आव अर बाकी बाद में, जियां-
मैं आयो पण वो नीं मिल्यौ।
मैं चाल्यो अर वो भी चाल्यो।
समुच्चय बोधक अव्यय इसा उपवा्‌यां रै बीच में प्रयोग में आवै। जियां-गाय आई है कै बकरी आई है।
सम्बन्ध वोधक (Post Position)-
"ऐ अविकारी सबद हुवै जिका संग्या अर सर्वनाम रै सबदां रै सागै आय वां रो संबंध वाक्य रै दूजा सबदां रै सागै बतावै।" जियां-
थां बिना म्हारो कूण ?
स्कूल में कई तरै रा कमरा है।
भायलां वास्तचा ज्यान हाजर है।
थां सामै स्है दूबला।
बिना, खातर, कई, वास्तै, सामैं, आग, कनै, अठै, जिसो, जोग, सरीखो, बीचै, बिचालै, नैड़ै, लेख, पाछै, मझ, पछवाड़ै, ललै, ऊपर बारै, मांय आद।
समुच्चय बोधक (Conjunction)
"दो सबदां या वाक्यां नै मिलावणियो अविकारी सबद समुच्चय सबद कहीजै जियां-"
राम अर स्याम खलै।
राम पीसाओ आदमी है पण कंजूस है।
राम विद्वान है तो भी पढ़ावणो नीं आवै।
समुच्य बोधक सात भांत रा हुवै।
संयोजक- अर, और बो'र राम अर स्याम खेलै।
विभाजक- कै, या, चायै आद। राम कै स्याम एक गीत गासी।
विरोध दर्शक- राम पीसालो है पण कंजूस है।
संकेत वाचक- राम जे स्याम सूं हार जावै तो!
परिणाम वाचक राम हार जावै तो भी खिलाड़ी है।
कारण वाचक-राम रै हार मानणै सूं तो खेलणो ठीक है।
स्वरूप वाचक-राम जाणै अर बीं रो खेल।
अर, या, कै, अथवा, पण, ज्यूं, जे, ौर, तो, तोभी, ईंसै, जावै आद सबद बीच मांय लगा दो सबदां नै अर वाक्यां नै मिलावै।
विस्मय बोधक (Interjection)
सुख-दुख ईरखा, धिरणा बतावणियां सबदां नै विस्मण बोधक सबद कहीजै। आं रो वाक्य सूं कोई सम्बन्ध नीं हुवै, जियां-
खुसी बतावणिया-वाह स्पाबास !
दुख बतावणियां- राम राम, अरै बापजी, बापरै !
हैफ बतावणियां, हैं, ओहो !
तिरस्कार बतावणिया-दूरै, हट !
स्वीकार बोधक-आछ्यो, चोखो, जी, हुकम !
सम्बोधन बोधक- ओ, अरै, है जी, ओजी आ।
असम्मति बोधक- नां, नी, ऊं हूं।
ईसको बतावणियां-देखो, कांई ठाह।
राजस्थानी भासा में उच्चारण भेद बीजी भासाववां री तरियां इज है। ऐ अर औ रा दो उच्चारण हुवै। एक अइ अउ सरीखो जिसो संस्कृत में हुवै, जियां-
ऐयां = अइयां ओरत = अउरत
कैयां = कइयांकौरव = कउरव
कैबत = कइबत कौवो कउवो
दूजो जिसो हिन्दी में हुवै, जियां-
है मौत
जैसा मौन
राजस्थानी में हिन्दी सरीसा उच्चारण हुवै, संस्कृत सरहीसा नहीं. ऋ, ञ, ष, अर विसर्ग फगत संस्कृत रा तत्सम सबदां में काम आवै। आं रो सीह उच्चारण लोग भूलग्या है। आजकल आं रो उच्चारण इण भांत हुवै-
ऋ = रि
ञ = यं
ष = श
आथणी अर दिखणादी मारवाड़ी बोलियमां में 'स' री जगां 'ह' अर 'च-छ' री जकां एक भांत रो 'स' बोलीजै, जियां-
सांडेराव-हांडेराव
सा'व - हाव
सिरोही-हिरोही
चक्खी सक्की
छाछ-सास
नरोत्तमजी स्वामी व व अर ब रो फरक बतायो है। बीकानेर नै वै वीकानेर, बैवणै ै बैवडणो, बावणै नै वावणो, बजावणै नै वजावणो बतावै। पण ओ प्रयोग अब प्रचलन में नीं रैयो है। द अर ड़ आखरां रो कदे-कदे एक अजब उच्चारण हुवै। द रो उच्चारण टाबर तोतो बोलै जद 'ज' नै द बोलै। 'ड' रो उच्चारण डैरै सबद रै उच्चारण सूं जाण्यो जासी-
डेरो-जान रो डेरो। बीकानेर आली में 'डेरो' रोअरथ रैवणै रै थान सूं है, जियां-महाजन रो डेरो, पूगल रो डेरो।
ढेरो- बड्योडी जूं।
डैरो- कांटां री बाड़ रो डैरो। सेखावाटी में इण नै ढीरो कैवै।
कई अल्प प्राण आखरां रो महाप्राण तो कोन,ी पण हलकं महाप्राण जिसो उच्चारण हुवै। इणनै अनुप्राणित उच्चारण कैवै। अनुप्राणित उच्चारण बतावण सारू कदे-कदै रै आगै कोमा (') जिसो चिन्ह लगायीजै, जियां-
सारो सा'रो
पीरपी'र
मोरमो'र
पाड़पा'ड़
काणी का'णी
नार ना'र
जिण सबद सूं स्रिस्टी री किणी ई वस्तु रै नांव रो ठाह पड़ै वो सबद संग्या कहीजै। जिको सबद नांव, जाति, गुण आद नै बतावै वो संग्या सबद हुवै। संग्या रा तीन भेद हुवै-
संग्या, सरवनांव, विसेसण। वस्तु रै नांव नै नावं कैवै, जियां बकरी, हिन्दुस्तान, गंगाराम, जमना, मोठ, चांदी, सभा, धीरज।
बकरी-एक प्राणी रो नांव है।
हिन्दुस्तान एक देस रो नांव है।
गंगाराम-एक आदमी रो नांव है।
जमना-एक नदी रो नांव है।
मोठ-एक अन्न रो नांव है।
सभा-मिनखां री जमात रो नांव है।
धीरज-एक गुण रो नांव है।
संग्या रा तीन भैद हुवै-जाति, वाचक, व्यक्ति वाचक अक भाव वाचक।
किणी जाती रो बोध करावै वो जाति वाचक, जियां-बकरी, पीपल, गाछ।
बकरी दूछ देवण आलै पसुवां री एक जाति है।
पीपल दरखत री एक जाति है।
गाछ वनस्पतियां री एक जाति रो नांव है।
एक जाति री एक चीज रै नांव नै व्यक्ति वाचक संग्या कैयीजै, जियां-लूणी, सरबती, लक्षमणगढ।
लूण एक नदी रो नांव है।
सरबती एक लुगाई रो नांव है।
लक्षमणगढ़ एक गांव रो नांव है।
गुण, सुभाव, काम अर अवस्था रै नांव नै भाव वाचक संग्या कैयीजै, जियां-चराचराट, चतराई, भजन, पीड़, दुख, गीरीबी।
ऊन वाचक-हीनताबतावण आली संग्याव ऊनवाचक कहीजै। इण रा रूप नीचै मुजब है-
परसराम परसूपरस्यो
रामलाल रामूरामलो
धापांबाईधापाधापूड़ी
कालू रामकालू कालियो
सरबतीबाईसरबतीसरबतडी
सारदाबाईसारदासारदड़ी
बैजनाथबैजूबैजियो
रामेसरलालरामेसररामेसरियो
आं रै अलावा रूप भी है, जियां-
भैंस भेंसड़ी
बकरी बकरड़ती
गायगावड़ती, गावड़ी
किताबकिताबड़ी
पोथीपोथड़ी
स्कूलस्कलूड़ो
गांवगांवड़ो
डांगडांगड़़ी
रातरातड़ली
दिनदिनड़ो
कालेजकालेजड़ी
दूकानदूकानड़ी
सागसागड़ो
कुरसीकुरसड़ी
टेबलटेबलड़ी
रामारामली
संग्य रै बदलै आवै वो सबद सरवनांव कैयीजै, जियां-मैं बो, तूं, हूं, म्हां, तैं उण सरवनांव है। सरवनांवां राउदाहरण नीचै मुजब है
सरबती कैयो- मैं जावूं।
रामेसर मुरली नैं कैयो-तूं कियी पेटी लेवैलो।
रामी रै घरां कोईकोनी वा तीरथां गयोडी है।
ऊपरला वाक्यां में सरबती रै बदलै 'मैं' मुरली रै बदलै 'तूं' रामी रै बदलै 'वा' सबद आया है। ऐ सगला सरवनंव है। सरवनांव रा छह भदे हुवै-पुरस वाचक, निश्चयवाचक, अनिश्चय वाचक, प्रश्नवाचक, संवंधवाचक, अर निजबाचक।
पुरसवाचक सरवनांव पुरस रो बोध करावै अर पुरस तीन हुवै-उत्तम, मध्यम अर अन्य पुरस। बोलै जिको उत्तम पुरस, जियां म्हे, मैं, हूं आपां। जिणसूं बोलै वो मध्यम पुरस हुवै जियां- तूं थे, आप। जिणरी बात करीजै वो अन्य पुरस कैयीजै, जियां-बो, बै, वै वो, आद।
उतम अर मध्यम पुरस करवनांवां (मैं, तूं आप) नै टाल'र बाकी सगला सरवनांव अर संग्या अन्य पुरस हुवै। निज वाचक 'आप' तीनूं पुरसां में काम आवै।
निज रो अरथ देवै वो सरवनांव निजवाचक कैयीजै, जियां-आप (आपनै, आपसूं, आपरो)। निश्चयवाचक सरवनांव कनै रीय ादूर री निश्चित वस्तु रो बोध करावै, जियां-ओ, बो। ओ कनै री वस्तु रो बोध करावै, बो दूर री वस्तु रो बोध करावै। अनिश्चय वाचक सरवनांव अनिश्चित वस्तु रो बोध करावै, जियां-कोई, क्युं. प्रश्न वाचक सरवनांव सुवाल करणै में काम लेयीजै, प्रश्न बूझण में काम आवै, जियां-कुण, के किसो। संबंध वाचक सरवनांव दो वाक्यां रो संबंध करै, जियां-जो, जको, सो। उदाहरण सूं बात समझणी सोरी हुसी।
आप पधारो सा।
मैं आपनो पैलांई कह दियो हो।
निश्चय वाचक-पैलां आयोड़ा कोई वस्तु या आदमी सारू जिको सबद ग्यान करावै वो निश्चयवाचक हुवै।
किसनो कैयो, 'औ तो भोत ऊंडो कुवो है।'
रामेसर बोल्यो, 'मैं घस्सू गयो हो, बो तो भोत दूर है।'
अनिश्चय वाचक-जिण सरबनांव सूं किणी वस्तु विसेस रो ग्यान नीं हुवै, जियां-कीं कोई।
कीं देर हुयगी, माफ करज्यो।
ईश्वर रीमाया कोई नीं जाण सकै।
कोई तो हुसी।
प्रश्नवाचक-सुवाल खातर जिणकरवनांव रो प्रयोग हुवै वो प्रश्नवाचक सरवनांव हुवै, जियांं-कुण के।
कुण होसी ?
थांरो कोई नांव है ?
किसो रंग पसन्द है ?
संबंध वाचक-संबंध रो ग्यान करावै वो सरवनांव संबंध वाचक कैयीजै।
जावै जिका दिन आवै कोनी।
ओ बो ई आदमी है जिको काल मिल्यो हो।
ओ काल मिल्यो जिको ई आदमी है।
विसेसण
संग्या अर सरवनांव री विसेसता बतावै वो सबद विसेसण कैयीजै, जियां-
भूरती बकरी चरबा गई।
इण सबद में 'भूरती'सबद बकरी रै रंग नै बतावै।
ऐ दंधा चोखा कोनी।
इणवाक्य में 'चोखा' गतिविधियां रो गुण बतावै।
जिण संग्या अथवा सरवनांव री विसेसता विसेसण बतावै उणनै विसेस्य कैयीजै। ऊपरला उदाहरणां में 'भूरती' अर 'चोखा' सबद विसेसण है अर 'बकरी' अर दंधा सबद विसेस्य है। विसेसण रा च्यार भेद हुवै-गुण वाचक, परिमाण वाचक, संख्या वाचक, सार्वनामिक।
गुण वाचक वो है जिको गुण रो बोध करावै, जियां-चोर, बेईमान, बावलो, ऊंचो, भलो, बुरो, कालो, धोला, आद। परिमाण वाचक विसेसण वो हुवै जिको परिमाण नै बतावै, जियां-बोलो थोड़ो, कमती, बेसी, आधो, पूरो, सगलो, आद। संख्या वाचक वो हुवै जिको संख्या यानी गिणती बतावै, जियां-दो, सौ, हजार, लाख, आद
पैलो सौवों हजारवों लाखुवों
पाव, आधो, सवायो, साढै तीन
चोथो, दुगणो, अनेक।
पुरस वाचक अर जिन वाचक सरवनावां नै टाल'र बाकी सगला सरवनावां रो विसेसण री भांत प्रयोग हुवै। विसेसण री भांत काम में आवै जद वै विसेसण कैयीजै। आं नै सार्वनामिक विसेसण कैयीजै, जियां-बो आदमी, बो पाडो, कोई गांव, कीं पाणी, कांई बात, किण मिनख, जकी लुगाई।
सरवनावां रै आगै प्रत्यय जोड़'र गुणवाचक, परिमाण वाचक तथासंख्या वाचक विसेसण बणायीजै-
गुण वाचक-
ओ इसो, बो बिसो कुण किसो
ओ ऐड़ो बो बैड़ो कुण कैडो
परिमाण वाचक-
ओ इतो बो बित्तो कुण कित्तो
ओ इतोरो बो बितरो कुण कितरा
संख्या वाचक-
ओ इत्ता बो बित्ता कुण कित्ता
ओ इतरा बो बितरा कुण कितरा
क्रिया री विसेसता बतावण आला सबद क्रिया विसेसण कंयीजै, अठैकाम री खासियत रो बखाण हुवै, नांव रो नहीं, जियां
सोभागजी रोजीना पढै है।
राजस्थानी भासा मांय क्रिया विसेसण रा च्यार भेद मिलै जिका इण मुजब है-
1. काल वाचक क्रिया विसेसण
2. स्थान वाचक क्रिया विसेसण
3. परिमाण वाचक क्रिया विसेसण
4. रीति वाचक क्रिया विसेसण
काल वाचक क्रिया विसेसण-जिका सबदां मांय क्रिया रै समै रो ठाह पड़ै वै नै समै सार या काल वाचक क्रिया विसेसण कैयीजै, जियां-
जावलियाजी थांनै अबार ई जावणो चाहीजै। इण में अबार' सबद सूं जावणै क्रिया रै समैं रो ठाह पड़ै। आजकल, तड़कै, पछै, परस्यूं, रोजीना आद इसा और सबद है।
स्थान वाचक क्रिया विसेसण-जिका सबदां मांय क्रिया री जगां रो ठाह पड़ै वै जगां सार या स्थान वाचक क्रिया विसेसण कहीजै, जियां-प्राणसजी मांय आर र बैठो। मांय सबद स्थान सूचक है। अठै, उठै, मांय, बारै, नीचै, असवाड़ै-पसवाड़ै आद इसा और भी सबद है।
परिमाण वाचक क्रिया विसेसण-जिकै सबद सूं क्रिया रै परिमाण यानी कमी-बेसी रो ठाह पड़ै बीं नै परिमाण सारक्रिया विसेसण रा परिमाण वाचक क्रिया विसेसण कैवै, जियां घणओ खाणो कांई आछ्यो। घणो थोड़ो, मोकलो, सगलो, पूरो, आद परिमाण रा सूचक है।
रीतिवाचक क्रिया विसेसण-जिका सबदां सूं क्रिया हुवैणै रै ढंग रो पतो पड़ै वां नै रीत सार क्रिया विसेसण या रीतिवाचक क्रिया विसेसण कैवै, जियां-
सद्दीकजी सोवणौ गावै।
सोवणो, मघरो, सांचो, सरासर, होलै-होलै, थावस, चांणचुकै आद इसा और सबद है।
संग्या अर दूजा विकारी सबदां रै जिण रूप सूं संग्या रो बोध हुवै, वै वचन कहीजै। वचन चीज री गिमती बातवै कै चीज कित्तो ो है, संख्या बतावै। राजस्थानी में वचन रा दो भेद है-एक वचन, बहु वचन।
एक वचन ेकसंख्या रो बोध करावै यानी आ बतावै कै चीज ेक है, जियां-मतीरो, टींडसी, बूंटो, बकरी, पोथी, आद। बहु वचन एक सूं बेसी संख्या रो बोध करावै, यानी आ बतावै कै चीज ेक सूं जादा है, जियां-मतीरा, टींडस्यां, बूंटा, बकर्यां, पोथ्यां, आद।
कदे-कदे आदर दरसावण सारू एक वचन री जगां बहुवचन आवै। जियां-
आप कद आवोला।
ए कठै जासी।
सेठां नै लिख दियो है।
एक वचन सूं बहु वनच बणावण सारू नीचे मुजब प्रत्यय लागै-
नारि जाति रा सबद-ओकारान्त सबदां में 'आ' प्रत्यय लागै, जियां-घोड़ो-घोड़ा, बाबो-बाबा। बाकी नर जाति रा सबद दोनूं वचनां में एकसा रैवै, जियां-
एक वचन बहु वचन एक वचन बहुवचन
बादल बादल माली माली
राजा राजा साधु साधु
पति पति भालू भालू
उदाहरण--
बादल बरस्यो बादल बरस्या
राजा आयो राजा आया
नारी जाति रा सबद-अकारान्त सबदां में 'आं' प्रत्यय जुड़ै
रात रातां
चाल चालां
आकारान्त सबदां में 'आं' अथवा 'वां' प्रत्यय जुड़ै।
विद्या-विद्यावां, विद्यां
माला-मालावां, मालां
इकारान्त अर ईकारन्त सबदां से 'अया, इया' प्रत्यय जुड़ै। जियां-
नीति नीत्यां नीतियां
खेती खेत्यां खेतियां
उकारान्त अर ऊकारान्त सबदा में उबा, उपां अथवा उवां प्रत्यय जुडै, जियां-
रितु-रितुबां, सासू-सासुवां, सासवां, बहु बहवां
एकरान्त सबदां में ए, आं, अबां, एयां प्रत्यय जुड़ै। ओकारान्त में ओवां, ओकारान्त में ओवां प्रत्यय लागै।
विसेसण अर सरवनांवां मेंं भी वचन हुवै। (क) विसेसण कालो काला, (ख) सरवनांव-हूं-म्हे, बो-बै।
नर जाति रा ओकारान्त विसेसण रो बहुवचन बणावण सारू 'आ' प्रत्यय लागै, जियां-रातो-राता, कालो-काला, धोलो-धोला। बाकी नर जाति अर नारि जाति रा सगला विसेसण दोनूं वचनां में एक सरीसा रैवै, जियां-काली, घोड़ी-काली घोड्‌यां। नारी जाति रा विसेसण नांव री भांत काम आवै जद उणरो बहुवचन नांव री इण बणै-सुन्दरी आयी सुन्दरियां आयी।
सरबनांव रा एक वचन इण मुजब हुवै-
तूं थे जो जो
बो वै जिको जिका
वा वै कुण कुण
ओ ऐ कांई कांई
आ ऐ
मैं म्हे कोई कोई
(स्त्रीलिंग पुलिंग)
सबद देख कई बातां पर ध्यान जावै, जियां-सबद संग्या है कै सर्वनाम या विसेसण है। सबद रै भाव नै देख'र इसी बातां भी ध्यान में आवै, पण जै जाति रै आधार पर देखीजै तो ओ देखणो पड़डै कै सबद में स्त्री रो बोध हुवै कै पुरस रो। जाति आ बतावै कै नर है कै नारी। राजस्थानी में भी नर जाति (पुलिंग) नारी (स्त्रीलिंग) दोनूं तरै रा सबद है। नर जाति बतावै कै चीज नर है, जियां-ऊंट, माली, सेठ, राजा, कालो, धोलो, तुम्हार, राजपूत। नारी जाति बतावै कै चीज नारी है, जियां-ऊंटणी, मालण, राणी, काली, धोली, कुम्हारी, राजपूतणी। नर जाति सूं नारी जाति बतावण सारूं नीचे मुजब प्रत्यय जुडै-
णी बींन बींनणी
हंस हंसणी
जाट जाटणी
ई नानो नानी
कुम्हार कुम्हारी
सुनार सुनारी
बामण बामणी
आणी बंडत पंडताणी
ठाकर ठुकराणी
बणियो बणियाणी
जेठ जिठाणी
देवर देराणी
अण जोगी जोगण
नाई नायण
मालौ मालण
दरजी दरजण
चौधरी चौधरण
अवाणी गुरु गुरूवाणी
पांड्यो पंड़वाणी
इयाणी भाटी भटियाणी
घणो घणियाणी
राजस्थानी मेंइसता बिताई नर जाति रा सबद है जिकां रा नारी जाति रा सबद निरवाला है।
बदल गाय
गोधो गाय
फूंको भुवा
घणी लुगाई
घणी बहु
भाई भाण
भाई भोजाई, भाभी, भावज
मरद लुगाई
लोग लुगाई
ऊंट सांड
सालो सालाहेली
साब मेम
सुसरो सासू
राजस्थानी भासा में इसा भी मोकला सबद है जिका नारी जाति रा है पण वां सूं नर जाति रा सबद बणायीजै, जियां-
पोथी पोथो
बैन बैनोई
मासी मासो
रोटी रोटो
रांड रंडवो
भैंस भैंसो
राजस्थानी में जाति बिहूण (Sexless) सबदां री भी जाति हुवै। कुणसो सबद किसी जाति रो है इणरो ठाहप्रयोग सूं इज हुवै-
नर जाति- ग्रंथ मारग बास्ते कागद सरीर
नारी जाति- बाट आग चिट्ठी काया
जा बिहीण सबदां में नर जाति बड़पणै अथवा कठोरता रा अरथ हेवै अर जारी जाति छोटैपणै अथवा कोमलता रा, जियां-
पोथो पोथी
गाडो गाडी
जाति बिहूण संग्या मंय वै चीजां भी आवै जिकी जीवबिहूण है-पोथी, पेन, कमरो, बिरछ।
संग्या रै अलावा अन्य पुरुष वाचक सरवनांव अरओकारांत विसेसणां में भी जाति भेद हुवै, जियां-
विसेसण-
कालो काली
पीलो पीली
रातो राती
सरवनांव
बो बा जको जकी
जातिहीण सबदां में कदे-कदे नर जाति अर नारी जाति एक दम ई अलग अरथ देवै, जियां-
बाड़ो बाड़ी
चक्को चक्की
माटो माटी
बालो बाली
बड़ो बड़ी
पाटो पाटी
छाती छाती
झाड़ो झाड़ी
संग्या (या सरवनांव) रै जिण रूप सूं, उणरो सम्बन्ध किणी दूजै सबद रै साथै जुड़ियाड़ौ मिलै वीं रूप नै कारक कहीजै।
कारक आठ भांत रा हुवैओ। संग्या रै जिण रूप सूं, वाक्यरी क्रिया रै करण आलै रो ग्यान हुवै वो कर्त्ता कारक कहीजै, जियां-रामू जावै। नौकर सब्जी ल्यावै।
जिण वस्तुमाथै क्रिया रै काम रो असर पड़ै बी असर बतावण आलै संग्या रै रूप नै कर्म, कारक कहीजै, जियां छोरा भाठो बगावै। करण कारक संग्या रै बीं रूप नै कहीजै जिण मांयक्रिया रै साधन रो ग्यान हुवै, जियां-छोरो गाय नै जेवड़ै सूं बांध दीनी। जिण वस्तु सारू कोई क्रिया करीजै बीं री वाचक संग्या रै रूप नै संप्रदान कारक कहीजै, जियां सेठ विरासण नै धन दियो। अपादान संग्या रै बीं रूप नै कहीजै जिणसूं क्रिया रै विभाग री अवधि रो ठाह पड़ै, जियां बड़ सूं बड़वालो गिर्यो, गंगा हिमालै सूं निसरै। संग्या रै जिण रूप सूं उणरी वाच्य वस्तु रो सम्बन्ध किणी दूजी वस्तु रै साथै हुवणो मिलै, उण रूप नै संबंध कारक कहीजै, जियां-राणी रो म्हैल। छोरै री पोथी। मुरली री गाय। संग्या रो वो रूप जिणसूं क्रिया रै आधार रो ग्यान हुवै वपो अधिकरण कारक कहीजै, जियां-गाय रोही में चरै। छोरा छात पर चढै है। संग्या रै जिण रूप सूं किणी नै बका रणो, पुकारणो सूचित हुवै बीं नै नैं सम्बोधन कारक कहीजै जियां हे राम ! ओ भगवान ! ओ रामजी ! अरे छोरा अठे आ !
कारक सूचिक करण सारू संग्या या सरवनांव रै आगै जिको प्रत्यय लागै बों नै विभक्ति कहीजै। कारक रैसाथै उणरी विभक्ति आवै। इणरो आगै मुजब है-
कारक विभक्ति
कर्त्ता पैली, तीसरी, पांचवीं
कर्म चौथी, पैली
संप्रदान चौथी
करण पांचवीं, तीसरी
अपादान पांवचीं
अधिकरण सातवीं, आठबीं, तीसरी
संबंध छठी
संबोधन दूसरी
राजस्थानी भासा में दो कारक रूप मिलै। अविकृत कारक अर विकृत कारक। अविकृत कारक रो प्रयोग इण भांत मिलै। कर्त्ता रूप में, जियां-बालक आयो, ल्यालीबकरियो खावै है। अप्राणी वाचक खास कर्म रूप में, जियां-छोहार नै गायी रोटी देयी। ओकारांत संज्ञा सबदां नै छोड बाकी संज्ञावां रा विभक्ति-समेत ेक वचन रूप सगला कारक में अविकृत रूप सूं प्रयुक्त हुवै।
नै (कर्त्ता कारक) रै साथै, जियां-
एक वचन-बालक ई बाछड़ियो खोल्यो।
बहुवचन-बालाकां नै उधम मचाई।
नै, ई (कर्म कारक) रै साथै; जियां-
एक वचन-बलद ई बांध द्यो।
बलद नै चारो नीरो।
बहुवचन-बलदां नै बांध द्यो।
बलदां नै चारो नीरो।
छोर्यां ई पढ़ावो।
सूं, सै (करण कारक) रै साथै; जियां-
एक वचन-दीमाग सूं (सैं) काम करो।
बहुवचन लातां रा भूुत बातां सूं (सैं) नीं मानै।
नै, ई, बल्दी, बेई (सम्प्रदान कारक) रै साथै'
जियां-
एक वचन- बकरी नै (ई) घास घाली।
बहुवचन-बांदरां नै (ई) उछलणो आवै है।
टाबरां बेई (बल्दी) भी चम्पल
लावणी है।
म्हारै बेई दुख पायो।
सूं, सै (अपादान कारक) रै साथै, जियां-
एक वचन-दरखत सूं (सैं) पत्तो पड्यो।
बहुवचन-वां रै मूंडां सूं (सैं) लाल पड़ै है।
रो, री, रा (सम्बन्ध कारक) रै साथै; जियां
एक वचन-तेली रो बलद।
बहुवचन-बलदां रो जोत।
में, पै, नै (अधिकरण कारक) रै साथै; जियां-
एक वचन-स्कूल में (पैं) पढणो पड़ै।
बहुवचन-खेतां में (पै,नै) चिड़ी चिड़कल्यां
नुकसाण करै।
परसर्ग समेत
अधिकरण कारक सूं अधिकृत सबदां में, जियां-
म्हन ई गोद्यां लेल्यो।
वो बारणै ऊभो है।
करण कारक सूं अधिकृत संग्या सबदां मेंं; जियां-
बाछड्‌यो तिसायां मर्यो।
वो भूखां मरयो।
विभक्ति वचन प्रत्यय उदाहरण
पहली विभक्ति एक वचन रो राम रो बेटो।
बहु वचन रा रामू रा बेटा।
दूसरी विभक्ति एक वचन रा राम रा बेटा।
बहु वचन रा राम रा बेटा।
तीसरी विभक्ति एक वचन रा, रै रामरा बेटा में।
सगली विभक्ति बहुवचन रा, रै र ामू रै बेटां में।
स्त्रीलिंग
सगली विभक्तियां दोनूं वचन री रामू री छोरी।
रामू री छोर्यां।
रामू री छोरी में।
                                        रामू री चोर्यां में।

राजस्थानी फिल्मा री सूची

राजस्थानी फिल्मा री सूची


क्र.स.
फिल्मरोनांव
निर्माण रो साल
1नजराना1942
2बाबासा री लाडली1961
3नानी बाई रो मायरो1963
4बाबा रामदेव पीर1963
5बाबा रामदेव1963
6धणी लुगाई1964
7ढोला मरवण1964
8गणगोर1964
9गोपीचंद भरथरी1965
10गोगाजी पीर1969
11लाज राखो राणी सती1973
12सुपातर बीनणी1981
13वीर तेजाजी1982
14गणगौर1982
15सती सुहागणडब्ड/1981
16म्हारी प्यारी चनणा1983
17सुहागण रो सिणगार1983
18पिया मिलण री आस1983
19चोखो लागे सासरियो1983
20रामू चनणा1984
21सावण री तीज1984
22देराणी जेठाणी1985
23डूंगर रो भेद1985
24नणद भोजाई1985
25थारी म्हारी1987
26जय बाबा रामदेवडब्ड/1987
27धरम भाई1987
28बिकाऊ टोरडो/आच्छ्यो जायो गीगलो1987
29करमा बाई1988
30नानी बाई रो मायरो1988
31बाई चाली सासरिये1988
32ढोला मारूडब्ड/1988
33रामायणडब्ड/1988
34जोग संजोग/बाई रा भाग1988
35बाईसा रा जतन करो1989
36सतवादी राजा हरिशचन्द्र1989
37घर में राज लुगायां को1989
38रमकूडी झमकूडी1989
39बेटी राजस्थान री1989
40चांदा थारै चांदणै1989
41मां म्हनै क्यूं परणाई1989
42बीनणी बोट देवणै चाली1990
43माटी री आग1990
44सुहाग री आस1990
45दादोसा री लाडली1990
46वारी जाऊ बालाजी1990
47भोमली1991
48भाई दूजडब्ड/1991
49बंधन वचना रो1991
50मां राखो लाज म्हारी1991
51जय करणी माता1991
52चूनडी1992
53लिछमी आई आंगणै1992
54बीनणी1992
55रामगढ की रामली1993
56खून रो टीको1993
57जाटणी1993
58डिग्गीपुरी का राजा1993
59बीरा बेगो आईजे रे1993
60गौरी1993
61बालम थारी चूनडी1994
62बेटी हुई पराई रे1994
63बाबा रामदेव1994
64दूध रो करज1995
65बीनणी होवै तो इसी1995
66बापूजी ने चायै बीनणी1995
67माताराणी भटियाणी1996
68राघू री लिछमी1996
69छम्मक छल्लो1996
70लाछा गूजरी1997
71जियो म्हारा लाल1997
72देव1998
73सरूप बाईसा1998
74जय नाकोडा भैरव1998
75सुहाग री मेहंदी1998
76छैल छबीली छोरी1999
77कोयलडी1999
78जय सालासर हनुमान1999
79गोरी रो पल्लो लटाकै2000
80म्हारी मां संतोषी2000
81बवंडर2001
82मां राज्स्थान री2001
83जय जीण माता2002
84मेहंदी राच्या हाथ2003
85चोखी आई बीनणी2003
86ओ जी रे दीवाना2004
87मांं बाप नै भूलजो मती2004
88खम्मा खम्मा वीर तेजा2004
89लाडकी2004
90जय श्री आई माता2005
91लाडलो2005
92पराई बेटी2006
93प्रीत न जाणे रीत2006
94मां थारी ओळू घणी आवै2006

राजस्थान रो खान-पान

राजस्थान रो खान-पान
राजस्थान रो खान-पान प्राय ः आपरी सात्विकता रे वास्ते जाणो जावे हैं।प्राय हिंदू शाकाहारी भोजन रो उपयोग करे हैं पण कुछ लोग मांसाहार रो भी उपयोग करे हैं। मारवाड री अर्थव्यवस्था पशुपालक रेई हैं,इण वास्ते भोजन मे दूध व दूध सू वणियोडी चीजा जिया की दही ,छाछ ,मटठो,घी आदि रो खावा मे उपयोग होवे हैं।साधार ण लोगो मे ज्वार,मोठ ,कुलथ ,मसूर,उड्द औंर तूर रो उपयोग होवे हैं।इणरे अलावा चावल, गेंहू,मकई औंर दुसरे अनाजो रो भी उपयोग होवे हैं पण बाजरे रो उपयोग ज्यादा होवे हैं। सस्ती होने रे कारण गरीब लोगो मे भी इरी बहोत खपत रेवे ।किसानो रे अलावा दूसरा ग्रामीण भी खाणे मे सागरा औंर राबा बहोत प्रचलित हैं।
साधारण लोग दिन मे तीन बार भोजन ग्रहण करे हैं- सीरावण (नाश्ता),दुपहरी (दिन रो भोजन) औंर रात बियालु (रात रो भोजन ) ऩाशते मे बाजरे री रोटी रे साथे घी ,दही, दूध व,मटठो लेवीजे हैं।सब्जियो मे मेथी, पालक या सोया आदि रो उपयोग होवे हैं। दूपहरी मे सोगरा ,मूंडा या मोठरी दाल ,प्याज औंर एक लालमिर्च रो भोजन करिजे। लोग खीचडी रो भी सेवन करे हैं। ओ सब भोजन स्वास्थ्य रे अनूकूल मानीजे हैं।
पांच तरह रे खाधो सू वणियोडी पंचकुट मारवाड री खासियत हैं। जिणमे सांगरी,खैंर (सुखे मेवे ), कुमाथिया (बील),अमचूर औंर मिर्ची होवे हैं। सब्जियो मे कैंर , सांगरी ,फ़ोग,ककडी, फ़लिया ,टिंडा ,खींपोली ,कंकेडा सब जगा होवे हैं।इरे अलावा मूली, गाजर ,शकरकंद औंर तरबूज भी उगाविजे हैं।
अठे क ई तरहा री मिठा ईया औंर नमकीन विश्‍व मे विख्यात हैं। जोधपुर मे मावे री कचौंडी, बीकानेर मे रसगुल्ला,नागौंर मे मालपुवा,किशनगढ मे पेठा,मेड्ता मे दूध पेडा, लूणी मे केशनबाटी, पाली मे गूंजा,नावा मे गूंद रा पापड , सांभर री फ़ीणी ,खारचीरी राबडी व खुनसुना री जलेबी लाजवाब मानीजे हैं। बीकानेरी भूजिया,जोधपुरी मिर्ची बडा,दाल मोठ,कोफ़्ता व शाही समोसा प्रसिद्ध हैं।राजस्थान रे प्रमुख खान पान मे दाल बाटी औंर चूरमो प्रसिद्ध हैं। ओ खाणे मे बहोत स्वाद होवे हैं।
गरीब औंर समृद्ध लोगो रे भोजन मे बहोत अन्तर हैं। समृद्ध लोग बहोत तरह री सब्जियो सु सुगंधित रसो,सुखा मेवा औंर फ़ीणी ,घेवर औंर खाजा जिसी मिठाईया ,नारियल चावल औंर गेंहू सू वणियोडा कई तरह रा व्यज्ंान,दाल,औंर अचार रो उपयोग करिजे हैं।शादी विवाह रे अवसर ऊपर लपसी,सीरो,औंर लाडू बणाई जे हैं।शादी रे अवसर ऊपर गंगाजल,इलायची औंर कपूर ,लौंंग रो सेवन करिजे हैं ।गरीबो मे बाजरे री रोटी रो प्रचलन हैं।
खान-पान

तिल रा लड्डू

तिल सूं बण्‍या व्‍यंजन गर्मी अर ऊर्जा दोई देवै हैं, जिणरी जनवरी री ठंड रै मौसम माय घणी आवश्यकता होवै है। तिल अर गुड़ नैं मिलार बणाया गया लड्डू मकर संक्रांति माथै अवश्य बणाया जावै हैं। आओ आज आपां तिल गुड रा लड्डू बणावणा सीखां।
आवश्यक सामग्री:
  • तिल - 500 ग्राम
  • गुड़ - 500 ग्राम
  • घी - 2 छोटी चम्मच
विधी : 
तिल नैं आच्छी तरह साफ कर लो और भारी तले री कढ़ाई माय आग माथै रखर लगातार चमचे सूं चलाता थका, हल्के भूरा होवा तक भून लो।  भुने तिल सूं आधा तिल हल्का सा कूट लो या मिक्सी सूं हल्का सा चलार दरदरा कर लो। साबुत अर कुट्या तिल मिला दो। गुड़ नैं कढ़ाई माय एक चम्मच घी डालर गरम कर लो। गुड़ पिघलवा माथै आग बन्द कर दो। अबे पिघळिया गुड़ माय तिल डालर आच्छी तरह मिलालो। गुड़ तिल रै लड्डू बणवा रो मिश्रण तैयार है। हाथ नैं घी लगार चिकणा कर लो, मिश्रण सूं थोड़ो थोड़ो मिश्रण उठार गोल लड्डू बणालो। लड्डू गरम मिश्रण सूं ही बणाणा पड़ै हैं, मिश्रण ठंडो होवा पे जम जावौ है अर लड्डू बणाणो मुश्किल हो जावै है। अणा लड्डू नैं आप तुरंत भी खा सको हो अर तैयार लड्डू नैं 4-5 घंटे खुली हवा माय छोड़र खुश्क होवा रै बाद आप वणानैं एअर टाइट कन्टेनर माय भरर 3 महिने तक खा सको हो।

बाजरे रौ खिचड़ो -


बाजरे रौ खिचड़ो घणौ स्वाद होवै है। यो राजस्‍थान रा मारवाड़ प्रांत माय ज्‍यादा बणायो जावै है। क्‍यूंकै बाजरा री तासिर गर्म होवै है इणलिये यो ज्‍यादातर सर्दी रै मौसम माय ही बणायो जावै है। पण आप चावो तो यदाकदा इणनैं चावल री खिचड़ी रै विकल्प रै रूप माय बारहों महीना बणा सको हो। तो आओ बाजरे रो खिचड़ो बणावा।
आवश्यक सामग्री:
  • बाजरो - 200 ग्राम
  • मूंग री दाल - 150 ग्राम
  • घी या तेल - 2 टेबल स्पून
  • हींग - 1 चुटकी
  • जीरा - 1 छोटी चम्मच
  • हरी मिर्च - 2 (बारीक कतरी)
  • अदरक - 1 इंच लंबो टुकड़ो (बारीक कतरियो)
  • हल्दी पाउडर - आधी छोटी चम्मच
  • हरी मटर रा दाणा - 1 छोटी कटोरी ( चाहें तो)
  • नमक - स्वादानुसार
  • हरा धणिया - 1 टेबल स्पून
विधी : 
बाजरे नैं साफ कर लो। पछै थोड़ो सो पाणी न्‍हाक’र विणनैं गीलो करलो और खरल माय न्‍हाकर अतरो कूटो कै बाजरे री संगळी भूसी निकळ जावै। भूसी नैं अलग करर बाजरे नैं धो लो। कूकर माय घी या तेल गर्म करर और उण माय हींग-जीरा न्‍हाकर भून लो। उणरै पछै उण माय हरी मिर्च, अदरक, हल्दी पाउडर व मटर रा दाणा न्‍हाकर 2 मिनट तक भूनो और फिर उण माय बाजरे री मिगी न्‍हाकर 2-3 मिनट तक चमचे सूं चलार फैर भून लो।

अबै कूकर माय दाल और बाजरे री मात्रा रो चार गुणा पाणी न्‍हाकर कूकर नैं बंद कर दो और एक सीटी आवा रै पछै 5 मिनट तक धीमी गैस माथै पका लो।

बाजरे रो खिचड़ो त्‍यार है। खिचड़ा नैं हरे धणिया सूं सजार दही, अचार या चटनी रै साथै जिमो अर जिमावों।

चूरमे रा लाड्डू

राखी सूं ठीक पेल्‍या आवा वाळा रविवार नै राजस्‍थान में फूली रो त्‍योहार मनावै। इण त्‍योहार माथै अठे चुरमा रा लाड्डू बणाया जावै। आओ आज आपां सीखा राजस्‍थानी चुरमा रा लाड्डू। 

सामग्री : 
  • 2 कटोरी गेहूं रो आटो 
  • 1 कटोरी गोळ (गुड़) 
  • 1, 1 / 2 कटोरी घी 
  • 1 / 2 चम्मच इलायची पावडर 
  • 2 -4 चम्मच कट्या थका पिस्ता अर बादाम 
  • २- 4 चम्मच खोपरो बारीक़ कट्यो 
  • चांदी रो वर्क , इलायची और पिस्ता पाउडर सजावट रै लिए 
विधी : 
सबसूं पैल्‍या आटा में थोड़ा घी रो मोयन दे अर उणमे थोड़ो गरम पाणी न्‍हाक’र 15 -20 मिनट रख दे| फैर मोटी मोटी बाटिया बणा’र सेक ले। जद सिक जावै तो दरदरो पीस ले। पिस्‍या मिश्रण में बादाम, पिस्‍ता, खोपरा, घी अर गुड़ आच्‍छी तरह सूं मिला’र लाडडू बांध ले। फेर वणानैं चांदी रै वर्क और इलायची , पिस्ता पाउडर सूं सजा दे। 
राजस्‍थानी मावा मालपुआ
मालपुआ राजस्‍थानी घरा माय बणवा वाळौ एक अस्‍यौ पकवान है, जो बरखा रै दिनां माय बणायौ जावै है। इणरै अलावा हरियाळी अमावस्‍या माथै अठै पारम्परिक रूप सूं मालपुआ अर खीर बणाया जावै हैं। साधारण मालपुआ बणावा रै लिये आटा नैं दूध या दही में घोळ्यौ जावै है अर इलाइची मिला’र मालपुआ तल लिये जावै हैं, अणा मालपुआं नैं खीर रै साथै खाया जावै है। पण राजस्थान में दूध, मावौ अर मैदो मिला’र मावा मालपुआ बणाया जावै हैं। अणा मालपुआ नै तलवा रै बाद चाशनी में डुबाया जावै है। तो आऔ आज आपां राजस्थानी मावा रा मालपुआ बणावां।

आवश्यक सामग्री 
  • दूध - 2 कप
  • मावा या खोया - 200 ग्राम ( 1 कप ) कद्दू कस कियौ थकों
  • मैदा - 100 ग्राम (1 कप)
  • चीनी - 300 ग्राम( 1 1/2 कप)
  • केसर - 20 - 25 टुकड़े (मन चावै तो)
  • घी - तलने के लिये
  • छोटी इलाइची - 3-4 (बारीक पीसी)
  • पिस्ते -  10-12 (बारीक कतरी)
दूध नैं हल्कौ गरम कर लौ। मावा नैं कद्दूकस कर’र एक कप दूध में डाल दो। आच्छी तरह एक दम मिलवा तक फैटो। फैर मैदा डाल’र आच्छी तरह सूं मिला लो (घोल में गुठलियां नीं रेणी चावै)। बच्‍यौ दूध थोड़ा थोड़ा डालो अर घोल नैं आच्छी तरह फैट’र जलेबी बणावा जस्‍यौ घोल त्‍यार कर लो।  मालपूआ बणावा रौ घोल त्‍यार है। घोल नैं 10 मिंट रै लिये ढाक’र रख दो।

चाशनी बणाएं: 
चीनी री मात्रा रै आधा सूं थोड़ा वत्‍तौ पाणी  (1 1/2 कप चीनी माय 1 कप पाणी) न्‍हाक’र एक तार री पतली चाशनी बणा लें। मालपुआ डालवा रै लिए चाशनी त्‍यार है।  चाशनी में केसर डाल’र मिला दें।

यूं बणावै मालपुआ:
चौड़ी कढाई जो उंडी कम व्‍है, विमें घी न्‍हाक’र गरम करे। आपणै मन पसन्द आकार रा मालपूआ बणावा रै लिय, 1 मालपूआ रै लिये, 1 चमचो या आधो चमचा घोल, गरम तेल में डालें।  कढ़ाई रै आकार रै अनुसार 2 - 3-4 मालपुआ डाल देवै। मंधरै आंच पै मालपूआ तळ ले।  हळका भुरा व्‍हैवा पै पलटे, दूजी ओर भी हळका भूरा व्‍हैवा दे। मालपूआ निकाल’र कणी रख दे। संगळा मालपुआ त्‍यार व्‍या पछे चाशनी में डुबौ दे। 5 मिंट बाद मालपूआ चाशनी सूं निकाळ’र बारीक कट्या पिस्ता न्‍हाक’र सजावै। गरमा’गरम या ठंडा मालपुआ खीर या रबड़ी रै लारै जिमो अर जिमावौ और म्‍हानै बतावौ कै कस्‍याक लागा आपनै राजस्‍थानी मावा मालपुआ।
जोधपुर रा मिर्ची बड़ा 
बरखा रो मौसम अर बात चटपटो खावा री व्‍है तो आपां राजस्‍थान रा मिर्चीबड़ा ने कदैही नीं भूल सकां। आओ आज आंपा सिखा कै किस तरह बणै है, जोधपुरी मिर्ची बड़ा।

सामग्री  

भरावन रै लिए- 
  • 3 बड़े उबळिया मैश किया आलू, 
  • 1-1 छोटा चम्मच अदरक व हरी मिर्च पेस्ट, 
  • डेढ़-डेढ़ छोटा चम्मच नमक व पिसी लाल मिर्च व शक्कर, 
  • 1/2 छोटा चम्मच हल्दी पाउडर, 
  • 1-1 छोटा चम्मच भुना जीरा व धनिया पाउडर, 
  • 1/2 छोटा चम्मच गरम मसाला, 
  • 2 छोटे चम्मच अमचुर पाउडर, 
  • 1 बड़ा चम्मच तेल।

छौंक रै लिए-
  • स्वादानुसार हींग व राई, 8-10 मोटी लम्बी हरी मिर्च।

कवर रै लिए-
  • 2 कटोरी मोटो बेसन, 
  • 1/4 छोटा चम्मच खावा रो सोडो, 
  • 1 छोटा चम्मच नमक और आवश्यकतानुसार तेल।

विधि :
  • कड़ाही में तेल गर्म करें। इणमें राई-हींग डाल’र चटकावै। अबै अदरक व हरी मिर्च डाल’र भून लें। इणमें मैश किया आलू और संगळा शेष मसाला डाल’र आच्छी तरह भून लें। त्‍यार भरावन नै ठंडो व्‍हैवा दें।
  • हरी मिर्च में लम्बाई में चीरो लगा’र बीज निकाल लें अर नमक लगाकर 10-15 मिनट रै लिए रख दें। फैर सूखे कपड़े सूं पोछ’र भरावन भर दें। बेसन में नमक, खावा रो सोडो और आवश्यकतानुसार पाणी डाल’र घोल त्‍यार करें। भरी हुई मिर्च नैं ण घोल में डुबो’र गर्म तेल में मध्यम आंच पै तल लें। इमली री चटनी रै साथै गर्मा-गर्म मिर्ची बड़े सर्व करें।

एतिहासिक स्थल

एतिहासिक स्थल


बूंदी रो किलो (तारागढ)इतिहास
मेवाड रा राणा लाखा कसम खाई की अमुक तिथी तक अगर बे इ किले ने ना जितेगा तो बे अन्न जल नही ग्रहण करेगा। पण जद किलो हासिल ना हुयो तो बे मिट्टी रो किलो बणवार बिने जीतणे री कोशिश करी इयारी सेना मे सामिल एक हाडा लडाके ने इ दुर्ग री रक्षा रो प्रयास करियो। ओ छदम युद्ध वास्तविक युद्ध मे बदल गियो औंर लडाके री मोत हुयगी। महमुद खिलजी औंर राणा कुम्भा भी क ई बार बूंदी ने जीत लिया। जयपुर नरेश सवाई जय सिंह इण पर आक्रमण कर बहनोई बुद्ध सिंह हाडा ने हटा र दलेल सिंह ने अधिपति बणायो ।
ओ किलो आप रे जीवन्त भित्ति चित्रो रे वास्ते भी जाणो जावे हैं। खासकर राव उम्मेदसिंह रे समय बणियोडी चित्रशाला बूंदी चित्र शैंली रो उत्कृष्ट उदाहरण हैं।बनावट
अरावली पर्वत श्रंृखला मे स्थित ओ किलो हाडा राजपूतो री वीरता रो प्रतीक हैं। बम्बादेव रा हाडा शासक देव सिंह बूंदी रा मुखिया जैंतामीणा ने हरा र बूंदी ने जीत लिया, बाद मे इया रा वंशज राव बर सिंह ई दुर्ग रो निर्माण करवायो।करीब 1,426 फ़ीट ऊंची पर्वत री चोटी पर स्थित होणे कारण ई किले ने तारागढ नाम भी देईजो।कर्नल टाड इ किले री स्थापत्य कला सु प्रभावित हो इने राजस्थान रो सर्वश्रेष्ठ किलो बतायो। तारागढ पर हाडा वंश रा राजा कदी भी एक छत्र राज ना कर सकिया । आपरी सामरिक स्थिती रे कारण ओ किलो आक्रान्ताओ री लिप्सा रो कारण रहयो।
जैंसलमेर दुर्गÔ
जैंसलमेर दुर्ग भारत री उत्तरी सीमा रे प्रहरी रे रूप मे खडो हैं। हैं।ओ दुर्ग भाटी राजपूतो री वीर भूमि रे रूप मे प्रसिद्ध हैं इण वास्ते ओ दोहो प्रचलित हैं।
गढ दिल्ली,गढ आगरो,अधगढ बीकानेर।
भलो चिणायो भाटियां,सिरैं तो जैंसलमेर।।
इतिहाससर्वप्रथम अलाउद्दीन खिलजी किले पर आक्रमण कर 8 साल तक डेरो डालियो।फ़िरोजशाह तुगलक रे समय दुसरो युद्ध हुयो जिण मे कई भाटी सरदार शहीद हुया औंर वीरांगनाया जौहर करियो।तीसरे युद्ध मे भाटी राजपूत वीर गति पाई पण रानियां जौहर कोनी करियो।ओ युद्ध शरणागत अमीर अली द्वारा रावल लूणकरण रे साथे धोखाधडी रे कारण हुयो।बनावट
इ दुर्ग ने रावल जैसल 1115 ई. मे बणवायो।ओ किलो 7 साल मे पूरो हुयो।जैंसलमेर दुर्ग त्रिकुटाकृ ति रो हैं जिण मे 99 बुर्जा हैं। इ दुर्ग ने पीले रंग रे पत्थरो पर पत्थरो ने राख र विशेष मसाले सु जोड र बणायो गियो हैं।पीले रंग रे पत्थरो रे उपयोग रे कारण धूप मे ओ किलो सोने रे समान चमके, जिका सु इने सोनगढ भी केविजे हैं।ओ दुर्ग 250 फ़ीट ऊंचो हैं जिण मे दोहरा परकोटा हैं।इण मे प्रवेश द्वार अक्षय पोल हैं जिके रे साथे सूरज पोल,गणेश पोल,औंर हवा पोल भी हैं।इण रो रंग महल औंर मोती महल जालियो झरोखो औंर आर्कषक चित्रकारी रे कारण दर्शनीय हैं। जैंसलमेर दुर्ग मे जैंन मंदिर ,बादल महल ,गज विलास,जवाहर विलास महल ,पार्शवनाथ मंदिर ,लक्ष्मी नारायण मंदिरऔंर ऋ षभदेव मंदिर भी वणियोडा हैं। किले मे ह्स्त लिखित ग्रन्थो रो सबसु बडो भंडार हैं।
जयगढ दुर्गइतिहास
मिर्जा जयसिंह द्वारा इण दुर्ग रो निर्माण हुयो हो। विशिष्ट केदीयो री जेल रे  रूप मे इ दुर्ग रो उपयोग हुवतो हो। सवाई जय सिंह आप रे छोटे भाई विजय सिंह ने अठे ही केद करियो हो औंर अठे ही विणरी मृत्यु होइ।अठे बाट औंर तराजू भी मिले हैं, जिका शायद बारूद तोलने रे काम आवता हा। इ गढ रो उपयोग धन ने सुरक्षित राखण वास्ते करिजे हो।मान्यता हैं कि काबूल,कंधार ने जीतणे बाद लायोडो धन अठे ही राखियोडो हो।
पूरे भारत मे ओ ही एक दुर्ग हो जिके मे तोप ढालने रो कारखानो हो।जय बाण तोप एशिया री सब सु बडी तोप हैं। इण तोप मे एक बार मे 100 किलो बारुद भरिजे हैं।तोप रो वजन 50 ट्न हैं। परीक्षण रे तौंर सु इने एक बार ही चलायो गयो ।
बनावट
इण दुर्ग रो विस्तार करीब 4 किमी री परिधि मे हैं।इण रा मुख्य दरवाजा डूृंगर ,दरवाजा ,अविन दरवाजा ,औंर भैंरु दरवाजा हैं। इण मे डूंगर नाहर गढ री ओर अवनि आम्बेर  राज प्रसाद री औंर दुर्ग दरवाजा साग़र जलाशय री ओर निकले हैं।दुर्ग मे सुरंग भी हैं।अठे जलेब चौंक ,खिलवत निवास,ललित मन्दिर,विलास मन्दिर,सूर्य मन्दिर,राणावत जी रो चौंक दर्शनीय हैं।अठे रे लक्ष्मी औंर विलास मन्दिर री जालियो मे बारीक कारीगरी करियोडी हैं।अठे काल भैंरव मन्दिर हैं।मनोरंजन वासते कठ पुतली उधान भी हैं।जय गढ रे भीतर एक अन्तःदुर्ग भी हैं।जिकेमे शास्त्रो रो विशाल सग्रंह हैं। जय बाण रे अलावा अठे ओर भी 9 तोपा राखियोडी हैं।ईण रे अलावा कई तरह री तलवारा,लम्बी राइफ़ला,बन्दूका,भाला,शाही नगाडा,घडा,विशाल कलश,आदि चीजा देखण वालो रो मन मोह लेवे हैं।
नागौंर दुर्गमारवाड रा दूसरा दुर्ग पहाडा ऊपर बणियोडा हैं पण नागौंर दुर्ग जमीन ऊपर बणियोडो हैं। बीच मे स्थित होणे कारण ईण पर निरंतर हमला होवता हा। नागौंर ने जांगल जनपद री राजधानी मानिजे हो। अठे नागवंशिय क्षत्रिय दो हजार साल तक शासन करियो। इरे निर्माण री एक विशे षता हैं कि बार सु छोडोडा तोप रा गोला प्राचीर ने पार कर किले रे महल ने कोई नुकसाण नहीं पहुँचा सके।जबकि महल प्राचीर सु ऊपर उठयोडो हैं।बनावट
नागौंर दुर्ग वास्तुशास्त्र रे नियमो रे मुताबिक वणियोडो हैं। इणरे चारो औंर गहरी खाई खोदीयोडी हैं। इणरो परकोटो 5 हजार फ़ीट लम्बो हैं। इण प्राचीर मे 28 बुर्जा औंर दोहरा परकोटा हैं।ओ दुर्ग चारो औंर सु रेत रे धोरो सु घिरयोडो हैं। नागौंर दुर्ग रो मुख्य द्वार बडो भव्य हैं। इ द्वार पर विशाल लोहे री सींंखचो वालो फ़ाट्क लागियोडो हैं।दरवाजो रे दोनो ओर विशाल बुर्ज औंर धनुषाकार भाग ऊपर 3 द्वार वालो झरोखा वणियोडा हैं।अठे सु आगे किले रो दूसरो विशाल दरवाजो हैं। बिरे बाद 60 डिग्री रो कोण बणतो तीसरो विशाल दरवाजो हैं। इ दो दरवाजो रे बीच रे भाग ने धूधस केविजे हैं।किले रो परकोटो दोहरो वणियोडो हैं।तीसरे परकोटो ने पार करने पर किले रो अन्तःभाग आ जावे हैं। किले रे 6 दरवाजा हैं । जिका सिराइ पोल , कचहरी पोल, सूरज पोल,घूषी पोल औंर राज पोल रे नाम सु जाणा जावे हैं। किले रे दक्षिण भाग मे एक मस्जिद हैं। इ मस्जिद ने शाँहजहा बणवाया था।
इतिहास
केन्द्रीय स्थल पर होणे कारण ई दुर्ग ने बार बार मुगलो रे आक्रमण रो शिकार होणो पडियो । महाराणा कुंभा भी दो बार नागौंर पर आक्रमण करियो। जिकामे बे सफ़ल हुया ।मारवाड रा शासक बख्त सिंह रे समय इ दुर्ग रो पुर्ननिर्माण करवायो गयो । ए किले री सुरक्षा व्यवस्था ने मजबूत करिया। मराठा भी इ दुर्ग ऊपर आक्रमण करियो। महाराणा विजय सिंह ने भी मराठो रे हमलो सु बचणे वास्ते कई महीनो तक दुर्ग मे रेवणो पडियो।ओ दुर्ग पांचाल नरेश द्रुपद रे आधिपत्य मे हो जिके ने अर्जुन जीतणे बाद द्रोणाचार्य ने सौंंप दियो हो।

प्रसिद्ध छतरीस्थान
8 खंभा री छतरीबाडोली
32 खंभा री छतरीरणथम्भौर
80 खंभा री छतरीअलवर
क्षारबाग री छतरियाँँकोटा अर बूंदी
बडा बाग री छतरीजैसलमेर
राव बीकाजी अर रायसिंह री छतरियाँँदेवकुंड (बीकानेर)
राठौड राजाओं री छतरियाँँमंडोर (जोधपुर)
राजा बख्तावर सिंह री छतरीअलवर
कछवाहा शासका री छतरियाँँगटोर (नाहरगढ, जयपुर)
राजा जोधसिंह री छतरीबदनौर
सिसोदिया वंश रे राजाओ री छतरियाँँआहड (उदयपुर)
रैदास री छतरियाँँचित्तौडगढ़
गोपालसिंह री छतरीकरौली
मानसिंह प्रथम री छतरीआमेर

जैसलमेर - पटवा री हवेली, सालिम सिंह जी री हवेली, नथमल जी री हवेली।

बीकानेर - बछावता री हवेली।

जोधपुर - बडे मिया री हवेली, पोकरण री हवेली, पाल हवेली, राखी हवेली।

टोंक - सुनहरी हवेली।

कोटा - बडे देवता री हवेली।

उदयपुर - बागोर हवेली।

झुंझुनूं - टीबडेवाला री हवेली, ईसरदास मोदी री हवेली।

नवलगढ - शेखावटी री स्वर्ण नगरी, पौद्दार हवेली, भगेरिया री हवेलियाँ, भगता री हवेली।

बिसाऊ(झुंझुनूं)- नाथूराम पोद्दार री हवेली, सेठ हीराराम-बनारसी लाल री हवेली, सेठ जयदयाल केडिया री पुराणी हवेली, सीताराम सिगतिया री हवेली।

मण्डावा(झुंझुनूं)सागरमल लाडिया, रामदेव चौखाणी, रामनाथ गोयनका री हवेलियाँ।

महनसर(झुंझुनूं)सोने चाँदी री हवेली।

श्रीमाधोपुर(सीकर)पंसारी री हवेली।

लक्ष्मणगढ(सीकर)केडिया री हवेली, राठी री हवेली।

चुरू - सुराणों रा हवामहल, रामविलास गोयनका री हवेली, मंत्रियां री मोटी हवेली।

बाडमेर जिले रो सामान्य परिचय


बाडमेर जिले रो सामान्य परिचय

सहयोग कर्ता रो नाम अने ठिकाणो
अर्जुन दान जी चारण
उगांव पोस्ट- करमावास
वाया-समदड़ी, जिला बाड़मेर-344021
हाल- सहायक वन संरक्षक
फलौदी, जिला- जोधपुर
मो.- 9414482882
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क्षेत्रफल28234.80 वर्ग कि.मी.साक्षरता59.65 प्रतिशत
समुद्र तल सु ऊँचाई3727 फ़ीटआदमियां री साक्षरता73.64 प्रतिशत
बिरखा रो औसत277 मि.मी.लुगाया री साक्षरता43.91 प्रतिशत
उच्चतम तापक्रम46 ं से.ग्रे.नगरपालिका2
न्युनतम तापक्रम5 ं से.ग्रे.55पंचायत समितियाँ8
कुल जनसंख्या19,63,758गांव पंचायता380
आदमियां री संख्या10,35,813राजस्व गांव1640
लुगाया री संख्या9,27,945,तहसील8
ग्रामीण जनसंख्या
शहरी जनसंख्या
देश रे सबसूं बड़ै प्रदेश रै दूजै सबसूं बड़ै जिले रो नांव है बाड़मेर। राजस्थान राज्य रै आथूणी दिस में आयौड़ौ जिलो बाड़मेर जिणरी 270 कि.मी. सीव पाकिस्तान सूं इ लागोड़ी। जिणरौ क्षेत्रफल 28387 वर्ग किलोमीटर है। जिले मांय 1964835 मिनख रेवै जिण मांय 926855 लुगायां अ'र 1038247 आदमी रेवै। शहरी क्षेत्र रै नांव माथै बाड़मेर अ बालोतरा दोय नगरपालिकावां जिणें कुल 145404 मिनख रेवै।
इतिहास
बाड़मेर जिले रौ घणकरौ भाग वो है जिणनै सुतंतरता सूं पैली मालाणी कया करता हा। मालाणी में न्यारा-न्यारा वगत में न्यारा-न्यारा राज। जागीरदरां आपरी हकुमत करी। पुराणै इतिहास में इण खेतर रो संबंध इतिहास सूं रयो है। खैड़ गुहिलां री राजधांनी ही। गुहिलां पछै परमार चौहाण अ'र राठौड़ा रौ राज इ अठै रयो है। राव मल्लीनाथ रै नांव माथे इज इण आखै क्षेत्र ने मालाणी रै नांव सू औलखीजै। जोधपुर रै राठोड़ां रै राज रौ प्रभाव होतां थकां इ मालाणी रा जागीरदार मांयली दीठ सूं सुतंतर ही हा। वि. सं. 1893 में अठै अंगरेजी हुकूमत आयगी अ'र जोधपुर रा हाकिम अठै अकूमत करता। सुतंतरता आंदोलन अ'र सामाजिक सुधार री लैङर अठे इ आई अ'र पछै बाड़मेर जिलौ बण्यौ। इण क्षेत्र री पिछांण मालांणी, शिव, सिवाणा अ'र पचपदरा परगनां सूं ही। आज इण जिले मांय बाड़मेर अ'र बालोतरा दोय उप खंड है। सात तहसीलां - बाड़मेर, बायतू, शिव, चौहटन, गुड़ामालांणी, पचपदरा अ'र सिवाणा है। अठै आठ पंचायत समितियां - बाड़मेर, बायतू, शिव, चौहटन, धौरीमन्ना, सिणधरी, बालोतरा अ'र सिवाणआ है। 380 ग्राम पंचायतां वालो औ जिलौ जैसलमेर पछै दूजे स्थान माथ है क्षेत्रफल रै हिसाब सूं। अई रै रैवासी आपरी मायडभासा राजस्थानी में बंतल करै। पण हिन्दी, अंग्रेजी, सिन्धी, गुजराती भासावां इ समझ लेवे है। साहित्य अ'र संस्कृति रौ अखूट भंडार है। रांणी रूपादे अ'र उणांरै गुरू धारू मेघवाल री भगती री बेलड़ी अठै बज पांगरी अ'र फूली-फली। एक मुसलमांन कवि आपरौ ग्रंथ घ्वीरवांणङ लिखियौ जिणमें उणां माता शारदा अ'र गणपति नै सैसूं पेली नमन करिया है। डाढ़ी बादर रो ग्रंथ डिंगल रो एक लूंठौ ग्रंथ है। डाढी बादर लिखै-सुमप समापौ शारदा, आपौ उकती आप।
कमधां जस वरणन करूं, तुझ महर परताप।।
समरू गणपत सरसती, पांण जोड़्द्व लग पाय।
गाऊं हूं सलपावियां, विध विध सुजस बखांण।।
डिंगल रा इज दूजा डकरेल कवि हा आसाणंदजी बारठ, जिणरा बाघा भरमलजी रा दूहा डिंगल री धरोहर है। आसाणंद रा भतीज अ'र स्वनाम धन्य ईसरदासजी भादरेस रा जाया जलमिया। ईसरदासजी भक्तिरस री धारा अठै चलाई। आप हरिरस, देवियांण जैड़ी भक्तिरस रै ग्रंथां री रचना करी अ'र साथै-साथै वीररस में हालां-झालां री कुडलियां री रचना करी जिकौ डिंगल साहित्य में आपरी ठावी ठौड़ राखै। बांकीदासजी आशिया जिका इण इज जिले रै पचपदरै परगणै रै गांव भांडियावास रा हा, जोधपुर रा राज कवि हा। अंगरेज रै देस माथे चढ़ आवण सूं दुखी होयङर आप राजा अ'र देसवासियों नै ओलभा देतां थकां कयो है।
आयौ अंगरेज मुलक रै ऊपर, आहंस लीधा खेंच उरा।
धणियां मूवां न दीधी धरती, धणियां ऊभां गई धरा।।
महि जातां चीचातां महिलां, ऐ दुय मरण तणा अवसांण।
राखौ रै किंहिक रजपूती, मरद हिंदू की मूसलमांण।।
बात आईज कै रजपूती कोई जात री हिमांणी नी है, जिकौ राखै उणरी है, चावै हिंदू वो कै मुसलमाण। साहित्य री सेवा अठारा स्व. भंवरदांनजी झिणकली, नृसिंहजी राजपुरोहित करी। अबरा इ कई कवि अ'र लिखारा साहित्य री सेवा कर रया है। जिणांमें खीमदांनजी बालेवा, डूंगरदांनजी बलाऊ डिंगल साहित्य में टणका नांव है। डॉ. आइदांनसिंह भाटी, महंत खुशालनाथ धीर, स्वामी जैठानाथ, छगन व्यास अ'र दूजा इ कई नांव है जिका साहित्य री लगोलग सेवा कर रया है।
लोक कला अ'र संस्कृति रा अठै भंडार भरियौड़ा है। अठारा लंगा, मांगलियार, मिरासी, ढोली जिणांरौ पीडियां रौ धंधौ रौ हो अ'र आपरी भेट भराई इण कला सूं इज करता हा। आजादी सू लेङयर 1965 तांई इणारी सगाई सगपण कै व्याव शादी रै मौके होवती ही। पण 1965 रै पछै कोमलजी कौठारी इण सगला गायकी जातियां नै आगे लावण सारू पूरी कोसिस करी अ'र रूपायन संस्थान रै सैयोग सूं इण सगला कलाकारो नै खास पैछांण नी फगत भारत में कराई बल्कि आखी दुनिया में इण कला रौ डंकौ बजाय दीनौ। दुनिया रौ एड़ौ कोई मुलक बाकी नी जठे लंगा, मांगलियार, मिरासी नी पहुंचिया व्है। इण कलाकारां मांय सूं कई जगचावा नांव है- अलादीन लंगा, दीन मोहम्मद लंगा, भूंगरखां, सद्दीक खां, समदर खां।
खनिज ' तेल 
फगत बाड़मेर जिल री आस इज नी खनिज अ'र तेल पण आ आखै राजस्थान री आस है। अठै मिलियौ लिग्नाइट आपरी किसम रौ अ'र इण सूं बिजली बणावण रौ कामं भादरेस गांव में चालू वैगो है। तिण रौ काम राजवेस्ट कम्पनी कर रही है। इणमें एक हजार मेगावाट बिजली बणाई जावेली। इण सारू सगणौ लिग्नाइट जालीपा अ'र कपूरड़ी गांव सूं लायौ जावेला। पाणी खातर 184 किमी लांबी पाइप लाइन इंदिरागांधी नहर सूं बिछाइजगी है। एड़ो अंदाज है कै पूरी खिमता सूं बिजली बणणी सरू होयां पछै प्रदेश में बिजली री कमी कोनी रेवेला। प्राकृतिक तेल रा भंडार इण जिले रै न्यारी न्यारी अगावां मिलिया है। जिणसुं अठै रिफाइनरी लागण री आस जागी है। रिफाइनरी लाग्यां सूं बाड़मेर जिले रै बाशिंदां नै रोजगार तो मिलेगा इस साथै-साथे प्रदेश ने अणूती आमदनी वैला। जिणसूं इण जिले अ'र प्रदेश रो कायापलट रौ काम व्हैला।
उद्योग धंधा अठै घणाइ चालै है। न्यारा न्यारा क्षेत्र में न्यारा न्यारा उद्योग है। बाड़मेर शहर में कपड़ा री रंगाई छपाई रौ आछौ धन्धो चालै है। अठारी चादरां, लुगायां रा कपड़ा अ'र अजख री छपाई जग चावी है। चौहटन अ'र उणरे आसै-पासै रे गांवां से लुगायां कांचरी कसीदाकारी रौ कां करै, जिकौ देखण अ'र सरावण जोग है। लुगायां रा कपड़ा माथै कांचरी कसीदाकारी री कारीगरी देखां तो बाकौ फाट जावै। लुगायां जद इण कसीदाकारी रा कपड़ा पहैरङर निकलै तो सूरज री रोशनी सूं कांच रै टुकडां सूं चिलकौ पड़ै जिकौ च्यारूं मैर चमक पैदा कर दे। बाड़मेर शहर में फर्नीचर रौ कां घणौ आछौ व्हे रयौ है। सरूपांत में अठै लकड़ी रा पागा अ'र घरटी री पुड़ी माथे खुदाई री कां करियो जावतौ पण अबै तो बड़ौ उद्योग बण गयौ है। बाड़मेर मांय 50 रै लगै-टगै कारखांना है, जठै फर्नीचर बणे है। रोहीड़ा री लकड़ी माथै नक्कासी रो कां घणौ सांतरौ व्है है। डबलबैड, ड्रेसिंग टेबल, सौफासेट, बार्डरोब सेन्ट्रल टेबल इत्याद सगला भांत-भांत रा आइटम अठै त्यार व्है रहा है, जिणरी आखै देश अ'र विदेशां में भारी मांग है। फर्नीचर उद्योग तो फल-फूल रयो है, पण इणरै साथे इ रोहिड़ा रौ नां निशान मिटण री तांई पहुंच गियो है। बाड़मेर जिले रै दूजै बड़े नगर बालोतरा री पिछांण रंग-छपाई रै कारण आखै देश में बणी थकी है। बालोतरा अ'र जसोल में 500 सूं वधती फैक्टरियां चाल रही है। जठै परतख अपरतख रूप सूं दस हजार लोगों ने रोजगार मिल रयो है। अठै पोपलीन छीट अ'र वायल री मनमोवणी छपाई रंगोई रौ कां व्है है। आज कालै स्क्रीन प्रिंट (Print) री साड़ियां इ त्यार करीजे है, जिणांरी मांग देश रै खुणै-खुणै में है।
बाड़मेर जिल में स्थापत्य कला रो घणौइ भण्डार है। किराड़ रा जैन मंदिर आपरी कहाणी खुद कैवे है। आज री तारीख में ऐ टूटा भाग मंदिर खुड मूंडै बोले जैड़ा है। उणानै देखङर अन्दाजौ लगायो जाय सके है जद व्है बणिया व्हैला कितरा फूटरा अ'र नांमी रया व्हैला। सिवांणा रौ किलौ, खेड़ रौ रणछोड़ मंदिर, नाकोड़ा रौ जैन मंदिर, जसोल में रांणी भटियांणी रो मंदिर, अटलधांम सिवाणा, आसोतरा रौ ब्रह्मधांम, भीमगोडा, हलदेसर, हिंगलाज माता रो मंदिर, चौहटन मे वीरातरा माता रो मंदिर, राठौड़ां री कुलदेवी नागणैच्या रौ मंदिर सगला आपरी स्थापत्य कला रा न्यारा-न्यारा नमूना पेश कर रया है।बाड़मेर जिले मांय मेळा घणाई भरीजे अ'र लोग इणा में घणै कोड सूं भाग लेवै। बाड़मेर में भरीजण वाला मेळा नीचे मुजब है :-
लाखेटा गैर मेळा :-होली रै पछै तीज रै दिन लाखेटा गांव मांय संतोषभारतीजी री समाधी माथै भरीजण वालो औ मेळो सांस्कृतिक एकता रौ लांठौ नमूनो है। आसै-पासे रा 20 गांवां रा लोग लुगाई टाबर इण मेळा में आवै। गैर नाच री होड़ व्है। पैले दूजै अ'र तीजै ठायै माथै आवण वाली गैर ने ईनांम दईजै।
कांनांणै (कानाना) रो डांडिया गैर मेळो-सीतला माता री याद में कांनांणा गांव में गैर मेळो व्है। अठै डांडिया गैर रो घणौ आछो आयोजन व्है। 30-40 गांवां री गैरां अठै धमचक मांडवै। लुगायां रा टोला ई लूर री तगड़ी बानगी पेश करै।
वीरातरा माता रौ मेळौ : चौहटन तहसील सूं 12 किमी दूर माथै आथूंणी दिस कांनी भाखरां रै बिचै वीरातरा माता रै मंदिर माथै साल मे तीन बार मेळौ भरीजै। मेळा चेत वदी तेरस, भादरवा सुदी तेरस अ'र माध सुदी तेरस रै दिन व्है है।
जसोल रौ रांणी भटियांणी मेळौ :- बालोतरा सूं पांच कि.मी. आंतरे लूणी नही रै दिखणादै कांठै बस्यौड़ीं है जसोल। अठै रांणी भटियांणी रो जग चावौ मंदिर है। अठै वैसाख, असाढ, भादरवा अ'र माघ रै महीनै मेळौ भरीजै। लुगायां रा थट्ट लाग जावे। हियौ हियौ दबीजै। तिल राखण में इ जगा नी रै।
बायत् रो खेमा बाब रौ मेळो :- बालोतरा अ'र बाड़मेर रै बिच्चै आयोड़ै गांव में भादरवा अ'र माध महीनै चांदणी नम रै खेमा बाब रौ मेळौ भरीजै। ऐड़ी मान्यता है कै बाब री किरपा सूं पांन हुयोड़ा ने अठै एकर फेरी दिरावण सूं ठीक होय जावै।
नागांणै रौ नागणेची मेळौ :- राठौड़ राजपूतां री कुलदेवी नागणेची माता रौ मंदिर नागांणै मे है जिसोक कल्याणपुरा सूं बालेसर जावण वाली सड़क माथै है। अठै नवरात्री में साल में दोय बार टणकौ मेळौ भरीजै। आखै देस सूं जातरू अठै आवे अ'र माता इणांरी मनरी इंछा पुरी करै। अठै लकड़ी री मूरत देखण जोग है।
कोलायत मे नौंका विहार री सुविधा भी हैं। अटे रे पवित्र सरोवर रे किनारे कई मंदिर व स्नान घाट बणयोडा हैं।
नागांणै रौ नागणेची मेळौ :- राठौड़ राजपूतां री कुलदेवी नागणेची माता रौ मंदिर नागांणै मे है जिसोक कल्याणपुरा सूं बालेसर जावण वाली सड़क माथै है। अठै नवरात्री में साल में दोय बार टणकौ मेळौ भरीजै। आखै देस सूं जातरू अठै आवे अ'र माता इणांरी मनरी इंछा पुरी करै। अठै लकड़ी री मूरत देखण जोग है।
ब्रह्मधांम आयोतर :- बालोतरा सूं सिवांणै जावतां मारग में आसोतरा ब्रह्मधांम आवै। अठै जैसलमेर रै भाठै रौ मनमोवणो मंदिर बलियोड़ी है। ब्रह्माजी अ'र सवित्रीजी री मूरतां मंदिर में बिराजै। मंदिर बणावणिया महान संत खेतारांमजी रौ मंदिर इ अठै बणियोड़ौ। यूं तो अठै बरस भर जातरू आवता रेवै। पण बैसाख री चांनणी पांचम अ'र छठ ने मेळो भरीजे।
नाकोड़ा तीर्थ :- बालोतरा सूं नव कि.मी. आंतरै भाखरां रै बिचै आयोड़ौ औ तीरथ पूरै देस मे चावौ है। अठै भगवांन री मूरत निज मंदिर मे थरपियोड़ी है। बाकी तीर्थकरां री मूरतां ई अठै बिराजै। नाकोड़ा भैरूजी री मूरत घणी मनमोवणी है। पोष में अंधारी दसमी रौ मेळौ भरीजै। जैन जातरूंवां रै अलावा अठै दूजा जातरू इ घणई आवै। अठै रैवण अ'र भोजन री आछी व्यवस्था है।
तिलवाड़ै री मेळौ :- भारत रा जूना पशु मेळां में सामिल मल्लीनाथ पशु मेळौ तिलवाड़ै जिकौ च्चेतरी रौ मेळौछ ई कैवीजे है। चेत वदी इग्यारस रै दिन झंडो रूपै अ'र पूरा 15 दिन तांई मेळो चालै। अठै राजस्थान, गुजरात, उत्तरप्रदेश, हरियाणा, पंजाब प्रदेशां सूं बौपारी डांगर खरीदण सारू आवै। लूणी नदी रै पाट में भरीजण वाले इण मेलै में मालाणी रा घोड़ा, थारपारकर बलद, बाड़मेरी उंट ज्यादा बेचीजै अ'र खरीदीजै। मेलै रै छैलै दिन पशुवां री होडाहोड व्है अ'र जीतववालां ने ईनांम दिरीजै।
बीजा पशुं मेळा :-इणीज भांत जसोल रांणी भटियांणी पशु मेळौ कात्ती सुद पांचम सूं इग्यारस तांई, गुड़ा मालाणी रौ जैतमाल पशुमेळौ काती वद आठम सूं चवदस तांई भरीजै। सिणधरी में बजरंग पशुमेळौ मिगसर सुद पांचम सूं इग्यारस तांई भरीजै।
थार महोत्सव :- होली रै दूजै दिन सूं सरू होयङर सीतला सातम तांई चालण वालौ औ महोत्सव देस विदेश रै पर्यटकां सारू घणौ महतारऊ है। इण मौकै पयर्ण्टकां सारू न्यारी-न्यारी मनमोवणी होड़ां राखीजै। थार महोत्सव बाड़मेर सूं सरू होयङर सीतला सातम रै दिन वीर दुर्गादास रै गांव कांनांणै (कानाना) मांय सीतला माता री पूजा रै साथै पूरो व्है। इण दिन न्यारा-न्यारा गांव री गैरा आवै अ'र पूरा जोस सूं आपरौ हुनर बतावै। इण री खास बात है आंगी गैर। आंगी गैर में गैरिया आपरी कमर माथै 15 मीटर घेर रौ कपड़े रौ वागौ पैरे अ'र पगां में दोय-दोय कीलो रा भारी घूघरा बांधै। पछै नाचै जद आंगी रा घेर अ'र घूघरां री घणकार देखण सुणण जोग व्है। लुगायां रौ नाच करङर सीतलामाता नै मनावै।
इण जिले रै रैवासियां देस आजाद हुवां पछै दोय युद्धां ने परतख झेलिया है। आंन-बांन सारू मरणिया मिनखां भूखा-तिरसा रय ई आपरै जवांनां रै हौसलौ बढ़यौ अ'र दुसमण रा दांत खाटा कर दिखाया है। 1965 रै जुद्ध में रेल्वे रा कर्मचारियां आपरी जांन जोखिम में घालङर काम करियौ। उण सगलां नै घणा-घणा नमन। अठा रा सपूत देस री सेवा में आगीवांण है। सेना में अठा रा सपूत सिपाही सूं लेयङर मेजरजनरल तांई रै औहदे पहुंच्या है तो सिविल सेवा में आई.ए.एस., आई.पी.एस, आई.एफ.एस. रै ऊंचै औहदे माथै इण धरा रा सपूत बिराजै अ'र आकै देस में आपरी सेवावां देवे है। हाईकोर्ट रा जज, पुलिस में डी.जी. माथै अठारा सपूत बिराजा रया है। एक बात, जिका अजै तांई खटकै है, वा आ है कै इण धरती सूं कोई ऐड़ो राजनेता नी हुवो जिणरो पिछांण भारत पूरै में व्है। अ'र जिकै इण क्षेत्र रो भलो पण कर सकै। विधांनसभा में इ कोई ऐड़ो नेता नी हुवो, जिकै जोर सूं अठारी अबखायां ने बताय नै उणाने मिटायी। आसा कर सकां कै आवण वालो समय में अठै ऐड़ौ नेता आवैला।
आज रे समय में इ अठै अजै तांई कई कुरीतियां जड़ां जमायोड़ी है। इणांने मिटावणी घणी जरूरी है। ऐ कुरीतियां फगत सरकारी कानून अ'र उणरै डंडा रै जोर नी मिटैला। समजा ने खुदनै आगै आवणौ पड़ैला। कई सामाजिक कार्यकर्ता कै गैर सरकारी संगठन आगै आवैला तो इज पार पड़ैला। आखातीज रै दिन अठै सैकड़ू बाल विवाह व्है जावै, जिणमें सगला सामिल व्है। नेता, अफसर, सगला। बाल विवाह रोकण सारू शारदा एक्ट बणियोड़ौ है, पण लागू करणो अबखौ कांम है। दूजी कुरीती है अमल खावणौ। सगाई, सगपण, ब्यांव, मुकलावौ अ'र मरतंग, सगला अवसरां माथै अमल खावण री परंपरा। सगाई, ब्यांव में तो एक दिन इज खावे पण मरतंग में तो बारै दिन तांई माखा भिणभिणावता। इणनै मिटावणो घणी जरूरी। एक औरूं कुरीती है टीका-दहेज। इण कुरीती कितरा घर बरबाद कर दीना है अ'र अबै तो इण कुरीती कितनी कन्यावां री भ्रूणहत्यावां कराय दीनी है। इणनै मिटावण री सगलां सूं पैली आवश्यकता है। सरकार कांनी सूं करड़ा कानून बणिया थका है, पण इण सारू आगीवांण तो समाज ने इज होवणो पड़ैला। जिण समाज में औ रोग घणौ बधियोड़ो है, उणांमे आज नी बल्कि अबै इज चेतणो पड़ेला नी तो लाडी री मन में इज रै जावैला।
मेह थोड़ौ नेह घणौ, आछी घणी आ ठौड़।
बढ़िया बाहड़मेर है, मरूधरा रौ मौड़।।