भासा अर व्याकरण में लूठो संबंध है। भासा हुवै जइ ई उण री व्याकरण बणीजै। जटै भासा नीं तो व्याकरण कांई री. भासा नैं साचै अर सही रूप मांय ढालणो अर नियमां मांय बांधणै रो काम व्याकरण रो है-जिण सूं भासा में अनुशासन आवै। सब्दां में अनुशासन रैवै। भासा री एकरूपता अर सबद रै सही अरथ सारू व्याकरण आधार है।
"सदां सूं विचार कहणै अर सुणणै रै साधन रो नांव ई भाशा हैं।" कैवणै रो मतलब कै भाशा अभिव्यक्ति रो माध्यम है, सम्प्रेसण रो साधन है। मिनख विचारवान है। आपरै विचारां नै वो बतावै, समझावै, सुणावैं अर दूजा रा विचार सुणै-पढै, लिखै अर समझै। आं स्है बातां सारू भासा ई सबलो साधन है। इयां तोलोग सैनां में ई बात कर सकै है अर समझ सकै है पण सैन सबलो साधन नीं हुवै। फेर सैन अस्पष्ट भी हुवै। बोलणो, सुणणो, लिखणो पढ़णो ी मिनख रै भावां अर विचारां रो सीधो-सादो साधन है। इण वास्तै भासा री जरूरत नै जाणीजी है। दुनियां मांय मोकली भासावां है-संस्कृत, हिंदी, राजस्थानी, अंगरेजी, जर्मन, फ्रेंच आद। आपणै देस मांय ई दरजणां भासा है।
बोली अर भाशा में फरक हुवै "भासा रो क्षेत्रीय रूप ई बोली कहीजै।" बोली हर बा'रा कोस पर बदलै पण भासा नीं। भासा अरब् बोली में थोड़ो सो ई फरक है। बोली रो साहित नीं हुवै। वा फगत बोली जावै। भासा री अक लिपि हुवै, एक साहित्य हुवै। राजस्थानी भासा है, बोली नीं। इणरी लिपी देवनागरी है।(कई भासावां री लिपि देवनागरी है जियां मराठी आद।) अर साहित रो अणथाग भंडार।
"भासा लिखणै रो तरीको लिपि कहीजै।" भासा रा आखर अर उणां रा चितराम उण भासा री लिपि हुवै। हिन्दी, राजस्थानी अर मराठी री लिपि देवनागरी है। उदू री फारसी अर अंग्रेजी री रोमल लिपि है। चोनी भाषा री लिपि आखरां रो नईं हुय'र चितरामां री लिपी है।
"लिपि ई भासा रै ग्यान रो भंड़ार साहित कैयीजै।" साति मांय उण देस अर जाति रै मिनखां रा भाव अर विचार देखण नै मिलै। साहित लिख्योड़ो भी हुय सकै अर जबानी भी। राजा स्थानी रै चारणी साहित रो थोड़ो हिस्सो जवानी भी है। लिख्योड़ै साहित में गद्य अर पद्य दोनूं आवै। पद्य मांय गीत, कवितचा, प्रबन्ध काव्य, खंड काव्य, दूहा, सोरठा, कुंडलियां गजल, नुवीं कविता आदहै। गद्य मांय बात, कहाणी, निबंध, नाटक, एकांकी पत्र, डायरी इन्टरव्यू, रिपोरताज, केरीकेचर आद है।
"व्याकरण वो सास्तर है जिको भासा गरै सरुप संबंधी नियमां री जाणकारी अर उण रो ग्यान करावै।" व्याकरण सबद रो अरथ (वि+आ+करण) सबदां रै शुद्ध रूप रो विवेचन करणो है। व्याकरण सबदां रो अनुशासन है। व्याकरण सीखणो भासा री जाणकारी करमै साथै उण री शुद्धता अर एकरुपता राखण खातर जरूरी हुवै। व्याकरण सीखणै सूं भासा नै बोलणो, लिखणो, समझणो सोरो हुज्यावै अर भासा रै प्रयोग मांय गलती कोनी हुवै। इणी वास्तै व्याकरण रो ग्यान करणो जरूरी है।
वर्ण वा मूल ध्वनि कहीजै जिणरा टुकड़ा नीं हुय सकै। जियां अ, ई इत्यादि। वर्ण सूं सबदां री रचना हुवै, सबांद सूं वाक्यां री। वाक्यां सूं भासा बणै। व्याकरण भासा रै सरूप संबंधी नियमां री जाणकारी देवै अर उण रो ग्यान करावै। व्याकरण भासा री बुणगट रो बखाण करै।
राजस्थानी भासा री वर्णमाला में 49 वर्ण ध्वनियां है जिणा मांय 11 स्वर अर 38 व्यंजन है। स्वर : अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ ऋ व्यंजन : क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व व् श ष स ह ल ड़ (.)अनुसाव अर (ः) विसर्ग
वर्णमाली री 11 स्वर ध्वनियां में अ, इ, उ, अर ऋ, ह्रस्व स्वर कैवावै। आ, ई, ऊ, ए, ओ,ऐ अर औ सात दीर्ध स्वर कैयीजै।
मुंडै सूं बोलीजण माला स्वर निरनुनासिक कैयीजै अर मुंडै अर नाका दीनुंवां सू बोली जण आला स्वर सानुसनासिक कैयीजै। लिखण में सानुनासिक स्वर री पिछाण वास्तै, स्वर रै ऊपर सादी विदी या चन्द्रबिंदु लगायो जावै-जियां अं पां इ ईं उं ऊं एं ओं औ, अ आं ई ईं ऊं ऊँ आद।
व्यंजन तीन विभागां में बांट्या जावै-स्पर्श, अन्तःस्य, घर्षक। स्पर्ष व्यंजनां रा पांच विभाग हुवै- क वर्ग ः क ख ग घ ङ च वर्ग ः च छ ज झ ञ ट वर्ग ः ट ठ ड ढ ण त वर्ग ः त थ द ध न प वर्ग ः प फ ब भ म
य र ल व- अन्तःस्थ व्यंजन है। श ष स ह ल व ड़- घर्षक व्यंजन कैयीजै- शैष स आं में ऊष्म व्यंजन है। वर्गा रा पैला, दूजा वर्ण, श ष स अर विसर्ग-ऐ चवदा वर्ण अघोष कैयीजै; बाकी वर्ण अर्थात्, वर्ग रा तीजा, चोथा अर पांचवां वर्ण य र ल व ल व ह ड तथा अनुस्वार अर स्वर-घोष कैयीजै। वर्ग रा दूजा, चोथा श ष स ह अर विसर्ग-ऐ पन्द्रा महाप्राण कैयीजै बाकी 28 वर्ण अल्पप्राण बाजै।
जिण रीप में वर्ण लिखीजै वा लिपी कैयीजै। राजस्थानी भासा जिण लिपि में लिखीजै वा देवनागरी लिपि बाजै। देवनागरी रै अलावा महाजनी जिणनै व्यापारी काम लैवै। इणरा आखर 'मुड़िया' कैयीजै। इण मांय मात्रावां नीं हुवै। विणज व्योपार में आ चालती। कामदारी लिपि राज रै दफ्तरां में प्रायः कर चालती। मोतीलाल मनारिया 'मुडिया' लिपि रो आविष्कार-कर्ता मुगल सम्राट अकबर रै अर्थ सचिव टोडरमल नै मान्यो है। देवनागरी लिपि में कई आखर तो दो-दो तीन-तीन तरियां लिखीजै। जियां- अ = अ ड़ = ड़ ए = ए ण = ण ऐ = एर = न ख = ष ल = ल छ = छ श = श ज = झत्र = त्न अनुस्वार - 0 अनुनासिक - ँ
स्वर व्यंजनन रै आगै आवै तो व्यंजन मे मिल जावै। मिलणै सूं उणरो रूप बदल जावै। बदलयौड़ै रूप नै मात्रा कैयीजै। मात्रावां इण तरियां है- स्वर- अ आ ई उ ऊ ए ओ औ ऋ।
मात्रा -ं ा ि ी ु ू े ै ो ौ 'अ' री कोई मात्रा को हुवैनीं। अ व्यंजन रै ागै आवै जद व्यंजन रो हल् रो चिन्ह आधो कर देवै, जियां-चू + अ = च मात्रावां स् व्यंजन रा जिका रूप बणै वा 'बारखड़ी' है। 'मात्रा मसेत व्यंजन रा रूपां नै बारखड़ी कैवै।' 'कै' री बारखड़ी इण तरियां हुवै- क का कि की कु कू के कै को कौ कृ
राजस्थानी में व्यंजन-शिक्षा नै क्को कैयीजै। क इणपद्धति ओ आद्यक्षर हुवणै रै कारणै व्यंजन माला रो पर्याय बणग्यो है। राजस्थानी में ओ ए क महुवारो है-'कक्को ई को जाणै नीं। बिना पढयै-लिख्यै सारू ओ मुहावरो कैयीजै। सीखण सारू प्राचीन पद्य भी बणियोड़ो है। जियां कक्को कोटकडो खक्का खून, चीर्टयो, गग्गा गोरी गाय, घग्गो घटूलियो आद।'
स्वर रै बिना व्यंजन एकोल आवै जद नीचै इसो (््,) चिन्ह लगायीजै। इण चिन्ह नै हल् कैयीजै। व्यंजन रै आगै व्यंजन आवै जद दोतुंवां रो संयोग हुज्यावै। संयोग हुयोड़ा व्यंजना नै संयुक्त व्यंजन या संयुक्त वर्ण अथवा भेला आखर कैवै। संयोग करण में पाइआला आखरां री पाई, अर आधी पाईआला आखरा री आधी पाई, आधो कर देवै। पाई बिना रा व्यंजन आगलै व्यंजना रै ऊपर लिखीजै, जियां- क् + ख = क्ख म् + ल = म्ल न् + य = न्य ङ् + ग = ङ्ग द् + व = द्व
कई व्यंजनां रा संयोग हुवणै सूं भोत ई निराला ई रूप हुवै, जियां- 'र' रो पूर्व संयोग र + म = र्मर + ह = र्ह र् + च = र्चर् + य = र्य र् + क = र्क र् + र = र्र 'र' रो पर संयोग श् + र = श्रह् + र = ह्व द् + र = द्रढ् + र = ढ ग + र = ग्रट् + र = ट्र क् + र = क्रछ् + र = छ्र प् + र = प्रत् + र = त्र
'य' रो संयोग ट् + य = ट्य ड् + य = ड्य क् + य = क्य ह +य = ह्य दूजा वर्णां रो संयोग ह + ण = ह्ण क् + ल = क्ल क् + त = क्त प् + त = प्त त् +त = त्त क् +ष = क्ष ज् + अ = ज्ञ
स्वर रा दो भेद हुवै- मूल स्वर,संधि स्वर। जइम स्वरां री उत्पत्ति किणी दूजै स्वर सूं नीं हुवै बीं नै मूल स्वर (ह्वस्व) कहीजै। मूल स्वर रै मेल सूं बग्योड़ा स्वर संधि स्वर कहीजै। जिया- आ, ई ए, ऐ, ऐ, आ,े औ।
संधि स्वरां रा दो भेद हुवै-दीर्ध अर संयुक्त। किणो एक मूल स्वर में उणी मूल स्वर रै मिलणै सूं जिको स्वर उत्पन्न हुवै वो दीर्ध स्वर कहीजै- अ + अ = आ, इ + इ = ई
न्यारा न्यारा स्वरां रा मेल सूंजिको स्वर बणै वो संयुक्तस्वर कहीजै अ + इ = ए, अ + उ = ओ।
उच्चारण रै हवालै स्वरां रा दो भेद और हुवै-साननुनासिक निरनुनासिक। जे मुंडै सूं पूरो-पूरो सांस निसार्योजावै तो शुद्ध निरनुनासिक ध्वनि निसरै, पण जे सांस रो कीं भी अंस नाक सूं निसर जाय तो अनुनानिसक ध्वनि निसरै। अनुनासिक स्व रो चिन्ह ँ है। जियां- गाँव, ऊँचो, नांव आद।
उच्चारण रै हवालै व्यंजननां रा भी दो भेद है-अल्प प्राण अर महा प्राण। जिण व्यंजना में हकार री ध्वनि विसेस रूप सूं सुणीजै, बीं नै महाप्राण अर बाकी स्है व्यंजना नां नै अल्प प्राण कहीजै। स्पर्श व्यंजनां में प्रत्येक वर्ण रा दूजा, चौथा आखर उष्म महा ्पराण है। जियां- ख, घ, छ, झ, ठ, ढ, थ, ध, फ, भ अर श, ष, स है बाकी स्है व्यंजन अल्प प्राण है। सगला स्वर अल्प प्राण है।
वर्ण रो उच्चारण- मुंडै रै जिण भाग सूं जिण अक्षर रो उच्चारण हुवै बीं नै अक्षर रो स्थान कहीजै। स्थान भेद सूं वर्णा रा नीचै मुजब भेद है-
कंठ्य- जिणां रो उच्चारण कंठ सूं हुवै। जियां- अ, आ, क, ख , ग घ ड़ विसर्ग। तालव्य- जिणां रो उच्चारण तालवै सूं हुवै। जियां- इ, ई, च, छ, ज झ, ञ, य। दंत्य- जिणां रो उच्चारण दांत माथै जीभ लगावै सूं हुवै, जियां- त, थ, द, ध, न, ल, स। मूर्द्धन्य- जिणां रो उच्चारण मूर्द्धा सूं हुवै। जियां-ट,ठ, ड, ढ, ण, र ष ओष्ठय- जिणां रो उच्चारण होठां सूं हुवै। जियां ऊ, प, फ, ब, भ, म अनुनासिक-जिणां रो उच्चारण मुंड अर नाक सूं हुवै। जियां- ङ, ञ, ण न म अर अनुस्वार। कंठता लव्य-जिणां रो उच्चारण कंठ अर तालवै सूं हुवै। जियां -ए ऐ
सबद विचार में सबदां रै भेदां रो, प्रयोगों रो, रूपान्तरां रो अर व्युत्पति रो निरूपण हुवै। सबदां रा तीन भेद हुवै-संग्या, क्रिया अर अव्यय। पदार्थ रो नाव अथवा विसेसता बतावै वो सबद संग्या कैयीजै। जियां- टेबल, जैपुर, सोनो, धोलो, ऊपरलो, घणो, च्यार। काम रो करणो हुवणो बतावै वो सबद क्रिया कैयीजै, जयां-करणो, देखणो, आवणो, बोलणो, बांचणो, पढसी बोलै है। जिण सबद में रूपांतर नीं हुवै वो अव्यय कैयीजै। संग्या अर क्रिया सबदां से रूपांतर हुवै। एक ही सबद रा कई रूप बणै। जियां- धोलो, धोला, धोली घोडो, घोड़ा, घोड़ां, घोड़ी, घोड्यां मैं, म्हैं, मनै, म्हां, म्हारो, म्हांसूं जासी, जावै जांवतो, जावती, गयो, गया संग्या में जाति, वनच अर विभक्ति रा रुपांतर हुवै, जियां- जाति : पुलिंग-बकरो काल बो स्त्रीलिंग बकरी काली बा वचन : एक वचन-बकरो कालो बो बहु वचन बकरा काला बै विभक्ति : पैली : बकरो बकरा दूसरी : बकरा बकरां तीजी : बकरै बकरां सरवनावां संग्या में पुरस रो रूपांतर और हुवै। जियां- अन्य पुरस बो बा बै मध्यम पुरस तूं थे आप उत्तम पुरस मैं (हूं) म्है आप क्रिया में जाति, वचन, पुरस, काल, वाच्य अर प्रयोग रा रूपांतर हुवै जियां- जाति : स्त्रीलिंग - आयी करती पुलिंग - आयो करतो वचन : एक वचन आयो करती आऊं बहुवचन- आया रतां आवां पुरस : अन्य पुरस खावै खावै आसी मध्य पुरस खावै कावो आस्यो उत्तम पुरस खावूं खावां आस्यां काल : वर्तमान डरै आवै भूत- डरियो आयो भविष्य- डरैला आवैला वाच्य : कर्तृवाच्य आवै करै करसी कर्मवाच्य X करीजै करीजसी भाव वाच्य-आयीजै X प्रयोग : बलद भाग्या बलद फूस चर्यो बलद सूं उठीजियो कोनी जिण सबद में रूपांतर नीं हुवै वो अव्यय हुवै, जियां-ऊपरणै आगै, आजकल, कठै, पण अथवा। आगै न्यारा-न्यारा पाठां में संग्या, क्रिया आद रै बारै में विस्तार सूं बतायीजसी।
राजस्थानी भासा में वाक्य रचनी री दीठ सूं वाक्य तीन तरै राह हुवै, यथा-साधारण, मिश्र,संयुक्त। साधारण वाक्य आकार में जादांलंबो नी हुवै। पांच-सात सबदां री वाक्य रचना आम तोर सूं मिलै। इण सूं बडा वाक्य भी मिलै अर छोटा भी। वडा वाक्यां मैं उद्देस्यां अर विधेयां नै विसेसण आद लगा लगू। र बहडा बणाया जा सकै। छोटा वाक्य एक सबद तांई रा भी मिलै। इसा वाक्य आग्या सम्बोधन आद रा मिलै, जियां-आ, जा, उठ, अरै। पण एक सूं जादा सबदां रै वाक्यां रो प्चलण ज्यादा है। जियां-तूं जा, अठै कांई करै, आद।
सामान्य तोर सूं वाक्यां में सबदां रो स्थान इण तरिया रैवै कर्त्ता, कर्म अर क्रिया। ओ कर्म बदलणै सूं कदै अरत दल जावै। जियां- घोड़ो घास चरै। ल्याली बकरी उठावै। सबद क्रम बदलणै सूं- घास घोड़ो चरै। बकरी ल्याली उठावै। पण इयां परसर्ग बिना रै सबहदां में ई हुवै। कर्त्ता अर क्रिया रो स्थान क्रमश वाक्य रैआद अर अन्त में निश्चित है, पण शेष कारक सबदां रो क्रम वाक्य रै बीच में इण तरियां मिलै- बो हाथ सूं काम करै। बो थेलै में आम लायो। द्रिकर्मक क्रिय रै प्रधान अर गौण कर्मां में प्रधान कर्म क्रिया रै नेड़ै हुयै, जियां- मैं उणनै दो मतीरा दिया। वाक्य बिना कर्त्ता, कर्म अर कर्यि रै भी बणै, जियां- कर्त्ता बिना-काकड़ो ल्या, मतीरो दे। कर्म बिना- तूं दे, मैं द्यूं। क्रिया बिना- च्यार खेत, चोबीस चौबारा। निजबाचक सर्वनाम पुरस वाचक सर्वनाम रै पछै आवै, जियां- तूं थारो काम करै। तूं थारै पापै पूनै लाग। तू थारै गलै लाग। विसेसण विसेष्य रै पैलां आवै, जियां- आ हरी-हरी घास है। वा कालती बकरी है। सूकली सेठाणी मरगी। वै केसरिया पाग बांध मेली है। विधेय विसेसण विसेष्य रै पछै अर क्रिया सूं पैली आवै। जियां- घास हरी-हरी है। बकरी काली है। पाग केसरिया है। संख्यावाचक विसेसण संग्या सूं पैलां आवै। जियां- दस बकर्यां। पांच ऊंट। छ मिजमान। विसेसण री विसेसता बतावण आला सबद विसेसण सूं पैलां आवै- जियां- जाडी हरी घास। हलको लाल रंग। गरो हर्यो रंग। वर्तमान कालिक अर भूतकालिक कृदन्त विसेसण रूप में प्रयुक्त सूं विसेष्य सूं पैलां आवै, जियां- रोतो छोरो। भाजती बकरी। मरी खाल। भेव सबद भेदक सबद रै पछै आवै अर परसर्ग दोनुंवां रै बीच में हुवै, जियां- बिलाई रो बचियो। सांप रो कांचलो। क्रिया रा पूरक सबद क्रिया रै पैलां आवैं। जियां- आछ्यो रहसी। आधो काम। पूरो काम। चोथाई टुकड़़ो। संयुक्त क्रियावां में प्रधान क्रिया गौण, क्रिया सूं पैली आवै। जियां- गयो परो। खा बैठ्यौ। चाल दियो। सहायक क्रिया सूं मुख्य क्रिया पैना आवै। जियां- जावै है। गयो हुवैला। आतोहुसी। स्थानवाचक अर कालवाचक क्रिया विसेसण कर्त्ता सूं पैलां अर पछै प्रयुक्त हुवै, जियां- उठै तूं रैवै है। तूं काल जावैलो। बाकी क्रिया विसेसण विधेय सूं पैली आवै, जियां- वा होलै पग उठावै है। वै तावला चालै है। समुच्चय बोधक अव्वय रा विभाजनक अव्यय दो संबंधित सबदां रा वाक्यां रै बीच में आवै, जियां- गाय अर बकरी आवै है। तूं आयो अर मैं गयो। सांप अर न्योलियो लड़ै है। तो अर ई उण सबद रै लार आवै जिण माथै जोर दिरीजै, जियां- मैं तो चालूं। सांप ई मर्यो हो। तूं ई गयोहो। क्रिया माथै जोर-कैय तो दियो कर्त्ता माथे जोर-ढांढा खेत भेल दियो। कर्म माथे जोर-रिपड़ा हाथ लागग्या दीखै थारै करम माथै जोर-हाथ सूं काम करण आलो कदे दुख नीं पावै। सम्प्रदान माथै जोर-गाय म्हारी है। अपादान माथै जोर-लेसुवै सैं पत्तो पड्यो अधिकरण माथै जोर-घर में तौ चूसा कलाबादी खावै है। राजस्तानी वाक्यां में संग्या सर्वनाम अर विसेसण मांय सूं कोई भी कर्त्ता हुय सकै। जियां- गाय आयी। वो गयो। मोरियो आयो।
निषेषवाचक वाक्या-इसा वाक्यां री रचना विधानार्थक वाक्यां जिसी हुवै। जिणां में निषेषदावक अव्यय इण मुजब रूप में मिलै- क्रिया सूं पैला आवै, जियां- वा ऊंट पर नीं बैठै। क्रिया रै पछै भी आवै, जियां- तूं जावै मती। संयुक्त क्रिया में मुख्य अर सहायक क्रिया रै बीच में आवै, जियां- भैंस बकरी मार नीं गेरै। वाक्य रै सरूपोत में भी आवै, जियां- न वो जावै न तूं।
प्रश्नवाचक-प्रश्नवाचक वाक्य दो तरै रा हुवै। ेकतो वै जिणां रो जवाब हां नां में हुवै, दूजा वै जिणां रै जबाब ममें किणी बात रो उत्लेख हुवै। पैलडै तरै रा वाक्या री रचना में, जियां- वो आसी ? वो आवैलो नीं ? वोजासी के ? के तूं जासी ? दूर्जै प्रकार रै वाक्यां में- छोरो कांईखावै है ? भागो कद गयो ? वो उठैक्यूं जावै ? घोडो खासी के ? थे हों कितरा ? केखायोतूं ? विस्मयादि बोधक- इसा वाक्य बणावण सारू रै, अर ऐद हैफ रो बोध करावम आला सबद जोड़ीजै- अरै छोरो कठै गयो ! अर छोरो डूबग्यो ! मिश्र वाक्य मिश्र वाक्यां में मुख्य उपवाक्य साधारण तोरसूं आश्रित उपवाक्य आवै अर इसा उपवाक्यां रैं बिचालै संयोजक सबद रोप्रयोक करीजै; जियां- रामलो बोल्यो कै ताई मैं तो छाय लेणनै आयो हूं। सरबती बोलौ कै दरत थारोल भारी है। उद्वृत कथनां में आश्रित उपवाक्य मुख्य उपवाक्यां रै पैलां आवै, कियां- तूं रूप री डली है आ बीरां मांटी कैयी। विसेसण उपवाक्य मुूख्य उपवाक्यां सूं पैला आवै, जियां- राम करै सो हुवै। संयुक्त वाक्य संयुक्त वाक्य में दो या बेसी प्रधान उपवाक्यां रो क्रम निर्धारित नीं हुवै पण फेर भी जिकी क्रिय काल-कर्म सूं पैली घटित हुवै तत्संबंधित वाक्य पैली आव अर बाकी बाद में, जियां- मैं आयो पण वो नीं मिल्यौ। मैं चाल्यो अर वो भी चाल्यो। समुच्चय बोधक अव्यय इसा उपवा्यां रै बीच में प्रयोग में आवै। जियां-गाय आई है कै बकरी आई है।
सम्बन्ध वोधक (Post Position)- "ऐ अविकारी सबद हुवै जिका संग्या अर सर्वनाम रै सबदां रै सागै आय वां रो संबंध वाक्य रै दूजा सबदां रै सागै बतावै।" जियां- थां बिना म्हारो कूण ? स्कूल में कई तरै रा कमरा है। भायलां वास्तचा ज्यान हाजर है। थां सामै स्है दूबला। बिना, खातर, कई, वास्तै, सामैं, आग, कनै, अठै, जिसो, जोग, सरीखो, बीचै, बिचालै, नैड़ै, लेख, पाछै, मझ, पछवाड़ै, ललै, ऊपर बारै, मांय आद।
समुच्चय बोधक (Conjunction) "दो सबदां या वाक्यां नै मिलावणियो अविकारी सबद समुच्चय सबद कहीजै जियां-" राम अर स्याम खलै। राम पीसाओ आदमी है पण कंजूस है। राम विद्वान है तो भी पढ़ावणो नीं आवै। समुच्य बोधक सात भांत रा हुवै।
संयोजक- अर, और बो'र राम अर स्याम खेलै। विभाजक- कै, या, चायै आद। राम कै स्याम एक गीत गासी। विरोध दर्शक- राम पीसालो है पण कंजूस है। संकेत वाचक- राम जे स्याम सूं हार जावै तो! परिणाम वाचक राम हार जावै तो भी खिलाड़ी है। कारण वाचक-राम रै हार मानणै सूं तो खेलणो ठीक है। स्वरूप वाचक-राम जाणै अर बीं रो खेल। अर, या, कै, अथवा, पण, ज्यूं, जे, ौर, तो, तोभी, ईंसै, जावै आद सबद बीच मांय लगा दो सबदां नै अर वाक्यां नै मिलावै।
विस्मय बोधक (Interjection) सुख-दुख ईरखा, धिरणा बतावणियां सबदां नै विस्मण बोधक सबद कहीजै। आं रो वाक्य सूं कोई सम्बन्ध नीं हुवै, जियां-
खुसी बतावणिया-वाह स्पाबास ! दुख बतावणियां- राम राम, अरै बापजी, बापरै ! हैफ बतावणियां, हैं, ओहो ! तिरस्कार बतावणिया-दूरै, हट ! स्वीकार बोधक-आछ्यो, चोखो, जी, हुकम ! सम्बोधन बोधक- ओ, अरै, है जी, ओजी आ। असम्मति बोधक- नां, नी, ऊं हूं। ईसको बतावणियां-देखो, कांई ठाह।
राजस्थानी भासा में उच्चारण भेद बीजी भासाववां री तरियां इज है। ऐ अर औ रा दो उच्चारण हुवै। एक अइ अउ सरीखो जिसो संस्कृत में हुवै, जियां- ऐयां = अइयां ओरत = अउरत कैयां = कइयांकौरव = कउरव कैबत = कइबत कौवो कउवो दूजो जिसो हिन्दी में हुवै, जियां- है मौत जैसा मौन राजस्थानी में हिन्दी सरीसा उच्चारण हुवै, संस्कृत सरहीसा नहीं. ऋ, ञ, ष, अर विसर्ग फगत संस्कृत रा तत्सम सबदां में काम आवै। आं रो सीह उच्चारण लोग भूलग्या है। आजकल आं रो उच्चारण इण भांत हुवै- ऋ = रि ञ = यं ष = श आथणी अर दिखणादी मारवाड़ी बोलियमां में 'स' री जगां 'ह' अर 'च-छ' री जकां एक भांत रो 'स' बोलीजै, जियां- सांडेराव-हांडेराव सा'व - हाव सिरोही-हिरोही चक्खी सक्की छाछ-सास नरोत्तमजी स्वामी व व अर ब रो फरक बतायो है। बीकानेर नै वै वीकानेर, बैवणै ै बैवडणो, बावणै नै वावणो, बजावणै नै वजावणो बतावै। पण ओ प्रयोग अब प्रचलन में नीं रैयो है। द अर ड़ आखरां रो कदे-कदे एक अजब उच्चारण हुवै। द रो उच्चारण टाबर तोतो बोलै जद 'ज' नै द बोलै। 'ड' रो उच्चारण डैरै सबद रै उच्चारण सूं जाण्यो जासी- डेरो-जान रो डेरो। बीकानेर आली में 'डेरो' रोअरथ रैवणै रै थान सूं है, जियां-महाजन रो डेरो, पूगल रो डेरो। ढेरो- बड्योडी जूं। डैरो- कांटां री बाड़ रो डैरो। सेखावाटी में इण नै ढीरो कैवै। कई अल्प प्राण आखरां रो महाप्राण तो कोन,ी पण हलकं महाप्राण जिसो उच्चारण हुवै। इणनै अनुप्राणित उच्चारण कैवै। अनुप्राणित उच्चारण बतावण सारू कदे-कदै रै आगै कोमा (') जिसो चिन्ह लगायीजै, जियां- सारो सा'रो पीरपी'र मोरमो'र पाड़पा'ड़ काणी का'णी नार ना'र
जिण सबद सूं स्रिस्टी री किणी ई वस्तु रै नांव रो ठाह पड़ै वो सबद संग्या कहीजै। जिको सबद नांव, जाति, गुण आद नै बतावै वो संग्या सबद हुवै। संग्या रा तीन भेद हुवै- संग्या, सरवनांव, विसेसण। वस्तु रै नांव नै नावं कैवै, जियां बकरी, हिन्दुस्तान, गंगाराम, जमना, मोठ, चांदी, सभा, धीरज। बकरी-एक प्राणी रो नांव है। हिन्दुस्तान एक देस रो नांव है। गंगाराम-एक आदमी रो नांव है। जमना-एक नदी रो नांव है। मोठ-एक अन्न रो नांव है। सभा-मिनखां री जमात रो नांव है। धीरज-एक गुण रो नांव है। संग्या रा तीन भैद हुवै-जाति, वाचक, व्यक्ति वाचक अक भाव वाचक। किणी जाती रो बोध करावै वो जाति वाचक, जियां-बकरी, पीपल, गाछ। बकरी दूछ देवण आलै पसुवां री एक जाति है। पीपल दरखत री एक जाति है। गाछ वनस्पतियां री एक जाति रो नांव है। एक जाति री एक चीज रै नांव नै व्यक्ति वाचक संग्या कैयीजै, जियां-लूणी, सरबती, लक्षमणगढ। लूण एक नदी रो नांव है। सरबती एक लुगाई रो नांव है। लक्षमणगढ़ एक गांव रो नांव है। गुण, सुभाव, काम अर अवस्था रै नांव नै भाव वाचक संग्या कैयीजै, जियां-चराचराट, चतराई, भजन, पीड़, दुख, गीरीबी।
ऊन वाचक-हीनताबतावण आली संग्याव ऊनवाचक कहीजै। इण रा रूप नीचै मुजब है- परसराम परसूपरस्यो रामलाल रामूरामलो धापांबाईधापाधापूड़ी कालू रामकालू कालियो सरबतीबाईसरबतीसरबतडी सारदाबाईसारदासारदड़ी बैजनाथबैजूबैजियो रामेसरलालरामेसररामेसरियो आं रै अलावा रूप भी है, जियां- भैंस भेंसड़ी बकरी बकरड़ती गायगावड़ती, गावड़ी किताबकिताबड़ी पोथीपोथड़ी स्कूलस्कलूड़ो गांवगांवड़ो डांगडांगड़़ी रातरातड़ली दिनदिनड़ो कालेजकालेजड़ी दूकानदूकानड़ी सागसागड़ो कुरसीकुरसड़ी टेबलटेबलड़ी रामारामली
संग्य रै बदलै आवै वो सबद सरवनांव कैयीजै, जियां-मैं बो, तूं, हूं, म्हां, तैं उण सरवनांव है। सरवनांवां राउदाहरण नीचै मुजब है सरबती कैयो- मैं जावूं। रामेसर मुरली नैं कैयो-तूं कियी पेटी लेवैलो। रामी रै घरां कोईकोनी वा तीरथां गयोडी है। ऊपरला वाक्यां में सरबती रै बदलै 'मैं' मुरली रै बदलै 'तूं' रामी रै बदलै 'वा' सबद आया है। ऐ सगला सरवनंव है। सरवनांव रा छह भदे हुवै-पुरस वाचक, निश्चयवाचक, अनिश्चय वाचक, प्रश्नवाचक, संवंधवाचक, अर निजबाचक। पुरसवाचक सरवनांव पुरस रो बोध करावै अर पुरस तीन हुवै-उत्तम, मध्यम अर अन्य पुरस। बोलै जिको उत्तम पुरस, जियां म्हे, मैं, हूं आपां। जिणसूं बोलै वो मध्यम पुरस हुवै जियां- तूं थे, आप। जिणरी बात करीजै वो अन्य पुरस कैयीजै, जियां-बो, बै, वै वो, आद। उतम अर मध्यम पुरस करवनांवां (मैं, तूं आप) नै टाल'र बाकी सगला सरवनांव अर संग्या अन्य पुरस हुवै। निज वाचक 'आप' तीनूं पुरसां में काम आवै। निज रो अरथ देवै वो सरवनांव निजवाचक कैयीजै, जियां-आप (आपनै, आपसूं, आपरो)। निश्चयवाचक सरवनांव कनै रीय ादूर री निश्चित वस्तु रो बोध करावै, जियां-ओ, बो। ओ कनै री वस्तु रो बोध करावै, बो दूर री वस्तु रो बोध करावै। अनिश्चय वाचक सरवनांव अनिश्चित वस्तु रो बोध करावै, जियां-कोई, क्युं. प्रश्न वाचक सरवनांव सुवाल करणै में काम लेयीजै, प्रश्न बूझण में काम आवै, जियां-कुण, के किसो। संबंध वाचक सरवनांव दो वाक्यां रो संबंध करै, जियां-जो, जको, सो। उदाहरण सूं बात समझणी सोरी हुसी। आप पधारो सा। मैं आपनो पैलांई कह दियो हो। निश्चय वाचक-पैलां आयोड़ा कोई वस्तु या आदमी सारू जिको सबद ग्यान करावै वो निश्चयवाचक हुवै। किसनो कैयो, 'औ तो भोत ऊंडो कुवो है।' रामेसर बोल्यो, 'मैं घस्सू गयो हो, बो तो भोत दूर है।' अनिश्चय वाचक-जिण सरबनांव सूं किणी वस्तु विसेस रो ग्यान नीं हुवै, जियां-कीं कोई। कीं देर हुयगी, माफ करज्यो। ईश्वर रीमाया कोई नीं जाण सकै। कोई तो हुसी। प्रश्नवाचक-सुवाल खातर जिणकरवनांव रो प्रयोग हुवै वो प्रश्नवाचक सरवनांव हुवै, जियांं-कुण के। कुण होसी ? थांरो कोई नांव है ? किसो रंग पसन्द है ? संबंध वाचक-संबंध रो ग्यान करावै वो सरवनांव संबंध वाचक कैयीजै। जावै जिका दिन आवै कोनी। ओ बो ई आदमी है जिको काल मिल्यो हो। ओ काल मिल्यो जिको ई आदमी है।
विसेसण संग्या अर सरवनांव री विसेसता बतावै वो सबद विसेसण कैयीजै, जियां- भूरती बकरी चरबा गई। इण सबद में 'भूरती'सबद बकरी रै रंग नै बतावै। ऐ दंधा चोखा कोनी। इणवाक्य में 'चोखा' गतिविधियां रो गुण बतावै। जिण संग्या अथवा सरवनांव री विसेसता विसेसण बतावै उणनै विसेस्य कैयीजै। ऊपरला उदाहरणां में 'भूरती' अर 'चोखा' सबद विसेसण है अर 'बकरी' अर दंधा सबद विसेस्य है। विसेसण रा च्यार भेद हुवै-गुण वाचक, परिमाण वाचक, संख्या वाचक, सार्वनामिक। गुण वाचक वो है जिको गुण रो बोध करावै, जियां-चोर, बेईमान, बावलो, ऊंचो, भलो, बुरो, कालो, धोला, आद। परिमाण वाचक विसेसण वो हुवै जिको परिमाण नै बतावै, जियां-बोलो थोड़ो, कमती, बेसी, आधो, पूरो, सगलो, आद। संख्या वाचक वो हुवै जिको संख्या यानी गिणती बतावै, जियां-दो, सौ, हजार, लाख, आद पैलो सौवों हजारवों लाखुवों पाव, आधो, सवायो, साढै तीन चोथो, दुगणो, अनेक। पुरस वाचक अर जिन वाचक सरवनावां नै टाल'र बाकी सगला सरवनावां रो विसेसण री भांत प्रयोग हुवै। विसेसण री भांत काम में आवै जद वै विसेसण कैयीजै। आं नै सार्वनामिक विसेसण कैयीजै, जियां-बो आदमी, बो पाडो, कोई गांव, कीं पाणी, कांई बात, किण मिनख, जकी लुगाई। सरवनावां रै आगै प्रत्यय जोड़'र गुणवाचक, परिमाण वाचक तथासंख्या वाचक विसेसण बणायीजै- गुण वाचक- ओ इसो, बो बिसो कुण किसो ओ ऐड़ो बो बैड़ो कुण कैडो परिमाण वाचक- ओ इतो बो बित्तो कुण कित्तो ओ इतोरो बो बितरो कुण कितरा संख्या वाचक- ओ इत्ता बो बित्ता कुण कित्ता ओ इतरा बो बितरा कुण कितरा
क्रिया री विसेसता बतावण आला सबद क्रिया विसेसण कंयीजै, अठैकाम री खासियत रो बखाण हुवै, नांव रो नहीं, जियां सोभागजी रोजीना पढै है। राजस्थानी भासा मांय क्रिया विसेसण रा च्यार भेद मिलै जिका इण मुजब है- 1. काल वाचक क्रिया विसेसण 2. स्थान वाचक क्रिया विसेसण 3. परिमाण वाचक क्रिया विसेसण 4. रीति वाचक क्रिया विसेसण
काल वाचक क्रिया विसेसण-जिका सबदां मांय क्रिया रै समै रो ठाह पड़ै वै नै समै सार या काल वाचक क्रिया विसेसण कैयीजै, जियां- जावलियाजी थांनै अबार ई जावणो चाहीजै। इण में अबार' सबद सूं जावणै क्रिया रै समैं रो ठाह पड़ै। आजकल, तड़कै, पछै, परस्यूं, रोजीना आद इसा और सबद है। स्थान वाचक क्रिया विसेसण-जिका सबदां मांय क्रिया री जगां रो ठाह पड़ै वै जगां सार या स्थान वाचक क्रिया विसेसण कहीजै, जियां-प्राणसजी मांय आर र बैठो। मांय सबद स्थान सूचक है। अठै, उठै, मांय, बारै, नीचै, असवाड़ै-पसवाड़ै आद इसा और भी सबद है। परिमाण वाचक क्रिया विसेसण-जिकै सबद सूं क्रिया रै परिमाण यानी कमी-बेसी रो ठाह पड़ै बीं नै परिमाण सारक्रिया विसेसण रा परिमाण वाचक क्रिया विसेसण कैवै, जियां घणओ खाणो कांई आछ्यो। घणो थोड़ो, मोकलो, सगलो, पूरो, आद परिमाण रा सूचक है। रीतिवाचक क्रिया विसेसण-जिका सबदां सूं क्रिया हुवैणै रै ढंग रो पतो पड़ै वां नै रीत सार क्रिया विसेसण या रीतिवाचक क्रिया विसेसण कैवै, जियां- सद्दीकजी सोवणौ गावै। सोवणो, मघरो, सांचो, सरासर, होलै-होलै, थावस, चांणचुकै आद इसा और सबद है।
संग्या अर दूजा विकारी सबदां रै जिण रूप सूं संग्या रो बोध हुवै, वै वचन कहीजै। वचन चीज री गिमती बातवै कै चीज कित्तो ो है, संख्या बतावै। राजस्थानी में वचन रा दो भेद है-एक वचन, बहु वचन। एक वचन ेकसंख्या रो बोध करावै यानी आ बतावै कै चीज ेक है, जियां-मतीरो, टींडसी, बूंटो, बकरी, पोथी, आद। बहु वचन एक सूं बेसी संख्या रो बोध करावै, यानी आ बतावै कै चीज ेक सूं जादा है, जियां-मतीरा, टींडस्यां, बूंटा, बकर्यां, पोथ्यां, आद। कदे-कदे आदर दरसावण सारू एक वचन री जगां बहुवचन आवै। जियां- आप कद आवोला। ए कठै जासी। सेठां नै लिख दियो है। एक वचन सूं बहु वनच बणावण सारू नीचे मुजब प्रत्यय लागै- नारि जाति रा सबद-ओकारान्त सबदां में 'आ' प्रत्यय लागै, जियां-घोड़ो-घोड़ा, बाबो-बाबा। बाकी नर जाति रा सबद दोनूं वचनां में एकसा रैवै, जियां- एक वचन बहु वचन एक वचन बहुवचन बादल बादल माली माली राजा राजा साधु साधु पति पति भालू भालू उदाहरण-- बादल बरस्यो बादल बरस्या राजा आयो राजा आया नारी जाति रा सबद-अकारान्त सबदां में 'आं' प्रत्यय जुड़ै रात रातां चाल चालां आकारान्त सबदां में 'आं' अथवा 'वां' प्रत्यय जुड़ै। विद्या-विद्यावां, विद्यां माला-मालावां, मालां इकारान्त अर ईकारन्त सबदां से 'अया, इया' प्रत्यय जुड़ै। जियां- नीति नीत्यां नीतियां खेती खेत्यां खेतियां उकारान्त अर ऊकारान्त सबदा में उबा, उपां अथवा उवां प्रत्यय जुडै, जियां- रितु-रितुबां, सासू-सासुवां, सासवां, बहु बहवां एकरान्त सबदां में ए, आं, अबां, एयां प्रत्यय जुड़ै। ओकारान्त में ओवां, ओकारान्त में ओवां प्रत्यय लागै। विसेसण अर सरवनांवां मेंं भी वचन हुवै। (क) विसेसण कालो काला, (ख) सरवनांव-हूं-म्हे, बो-बै। नर जाति रा ओकारान्त विसेसण रो बहुवचन बणावण सारू 'आ' प्रत्यय लागै, जियां-रातो-राता, कालो-काला, धोलो-धोला। बाकी नर जाति अर नारि जाति रा सगला विसेसण दोनूं वचनां में एक सरीसा रैवै, जियां-काली, घोड़ी-काली घोड्यां। नारी जाति रा विसेसण नांव री भांत काम आवै जद उणरो बहुवचन नांव री इण बणै-सुन्दरी आयी सुन्दरियां आयी। सरबनांव रा एक वचन इण मुजब हुवै- तूं थे जो जो बो वै जिको जिका वा वै कुण कुण ओ ऐ कांई कांई आ ऐ मैं म्हे कोई कोई
(स्त्रीलिंग पुलिंग) सबद देख कई बातां पर ध्यान जावै, जियां-सबद संग्या है कै सर्वनाम या विसेसण है। सबद रै भाव नै देख'र इसी बातां भी ध्यान में आवै, पण जै जाति रै आधार पर देखीजै तो ओ देखणो पड़डै कै सबद में स्त्री रो बोध हुवै कै पुरस रो। जाति आ बतावै कै नर है कै नारी। राजस्थानी में भी नर जाति (पुलिंग) नारी (स्त्रीलिंग) दोनूं तरै रा सबद है। नर जाति बतावै कै चीज नर है, जियां-ऊंट, माली, सेठ, राजा, कालो, धोलो, तुम्हार, राजपूत। नारी जाति बतावै कै चीज नारी है, जियां-ऊंटणी, मालण, राणी, काली, धोली, कुम्हारी, राजपूतणी। नर जाति सूं नारी जाति बतावण सारूं नीचे मुजब प्रत्यय जुडै- णी बींन बींनणी हंस हंसणी जाट जाटणी ई नानो नानी कुम्हार कुम्हारी सुनार सुनारी बामण बामणी आणी बंडत पंडताणी ठाकर ठुकराणी बणियो बणियाणी जेठ जिठाणी देवर देराणी अण जोगी जोगण नाई नायण मालौ मालण दरजी दरजण चौधरी चौधरण अवाणी गुरु गुरूवाणी पांड्यो पंड़वाणी इयाणी भाटी भटियाणी घणो घणियाणी राजस्थानी मेंइसता बिताई नर जाति रा सबद है जिकां रा नारी जाति रा सबद निरवाला है। बदल गाय गोधो गाय फूंको भुवा घणी लुगाई घणी बहु भाई भाण भाई भोजाई, भाभी, भावज मरद लुगाई लोग लुगाई ऊंट सांड सालो सालाहेली साब मेम सुसरो सासू राजस्थानी भासा में इसा भी मोकला सबद है जिका नारी जाति रा है पण वां सूं नर जाति रा सबद बणायीजै, जियां- पोथी पोथो बैन बैनोई मासी मासो रोटी रोटो रांड रंडवो भैंस भैंसो राजस्थानी में जाति बिहूण (Sexless) सबदां री भी जाति हुवै। कुणसो सबद किसी जाति रो है इणरो ठाहप्रयोग सूं इज हुवै- नर जाति- ग्रंथ मारग बास्ते कागद सरीर नारी जाति- बाट आग चिट्ठी काया जा बिहीण सबदां में नर जाति बड़पणै अथवा कठोरता रा अरथ हेवै अर जारी जाति छोटैपणै अथवा कोमलता रा, जियां- पोथो पोथी गाडो गाडी जाति बिहूण संग्या मंय वै चीजां भी आवै जिकी जीवबिहूण है-पोथी, पेन, कमरो, बिरछ। संग्या रै अलावा अन्य पुरुष वाचक सरवनांव अरओकारांत विसेसणां में भी जाति भेद हुवै, जियां- विसेसण- कालो काली पीलो पीली रातो राती सरवनांव बो बा जको जकी जातिहीण सबदां में कदे-कदे नर जाति अर नारी जाति एक दम ई अलग अरथ देवै, जियां- बाड़ो बाड़ी चक्को चक्की माटो माटी बालो बाली बड़ो बड़ी पाटो पाटी छाती छाती झाड़ो झाड़ी
संग्या (या सरवनांव) रै जिण रूप सूं, उणरो सम्बन्ध किणी दूजै सबद रै साथै जुड़ियाड़ौ मिलै वीं रूप नै कारक कहीजै। कारक आठ भांत रा हुवैओ। संग्या रै जिण रूप सूं, वाक्यरी क्रिया रै करण आलै रो ग्यान हुवै वो कर्त्ता कारक कहीजै, जियां-रामू जावै। नौकर सब्जी ल्यावै। जिण वस्तुमाथै क्रिया रै काम रो असर पड़ै बी असर बतावण आलै संग्या रै रूप नै कर्म, कारक कहीजै, जियां छोरा भाठो बगावै। करण कारक संग्या रै बीं रूप नै कहीजै जिण मांयक्रिया रै साधन रो ग्यान हुवै, जियां-छोरो गाय नै जेवड़ै सूं बांध दीनी। जिण वस्तु सारू कोई क्रिया करीजै बीं री वाचक संग्या रै रूप नै संप्रदान कारक कहीजै, जियां सेठ विरासण नै धन दियो। अपादान संग्या रै बीं रूप नै कहीजै जिणसूं क्रिया रै विभाग री अवधि रो ठाह पड़ै, जियां बड़ सूं बड़वालो गिर्यो, गंगा हिमालै सूं निसरै। संग्या रै जिण रूप सूं उणरी वाच्य वस्तु रो सम्बन्ध किणी दूजी वस्तु रै साथै हुवणो मिलै, उण रूप नै संबंध कारक कहीजै, जियां-राणी रो म्हैल। छोरै री पोथी। मुरली री गाय। संग्या रो वो रूप जिणसूं क्रिया रै आधार रो ग्यान हुवै वपो अधिकरण कारक कहीजै, जियां-गाय रोही में चरै। छोरा छात पर चढै है। संग्या रै जिण रूप सूं किणी नै बका रणो, पुकारणो सूचित हुवै बीं नै नैं सम्बोधन कारक कहीजै जियां हे राम ! ओ भगवान ! ओ रामजी ! अरे छोरा अठे आ ! कारक सूचिक करण सारू संग्या या सरवनांव रै आगै जिको प्रत्यय लागै बों नै विभक्ति कहीजै। कारक रैसाथै उणरी विभक्ति आवै। इणरो आगै मुजब है- कारक विभक्ति कर्त्ता पैली, तीसरी, पांचवीं कर्म चौथी, पैली संप्रदान चौथी करण पांचवीं, तीसरी अपादान पांवचीं अधिकरण सातवीं, आठबीं, तीसरी संबंध छठी संबोधन दूसरी राजस्थानी भासा में दो कारक रूप मिलै। अविकृत कारक अर विकृत कारक। अविकृत कारक रो प्रयोग इण भांत मिलै। कर्त्ता रूप में, जियां-बालक आयो, ल्यालीबकरियो खावै है। अप्राणी वाचक खास कर्म रूप में, जियां-छोहार नै गायी रोटी देयी। ओकारांत संज्ञा सबदां नै छोड बाकी संज्ञावां रा विभक्ति-समेत ेक वचन रूप सगला कारक में अविकृत रूप सूं प्रयुक्त हुवै। नै (कर्त्ता कारक) रै साथै, जियां- एक वचन-बालक ई बाछड़ियो खोल्यो। बहुवचन-बालाकां नै उधम मचाई। नै, ई (कर्म कारक) रै साथै; जियां- एक वचन-बलद ई बांध द्यो। बलद नै चारो नीरो। बहुवचन-बलदां नै बांध द्यो। बलदां नै चारो नीरो। छोर्यां ई पढ़ावो। सूं, सै (करण कारक) रै साथै; जियां- एक वचन-दीमाग सूं (सैं) काम करो। बहुवचन लातां रा भूुत बातां सूं (सैं) नीं मानै। नै, ई, बल्दी, बेई (सम्प्रदान कारक) रै साथै' जियां- एक वचन- बकरी नै (ई) घास घाली। बहुवचन-बांदरां नै (ई) उछलणो आवै है। टाबरां बेई (बल्दी) भी चम्पल लावणी है। म्हारै बेई दुख पायो। सूं, सै (अपादान कारक) रै साथै, जियां- एक वचन-दरखत सूं (सैं) पत्तो पड्यो। बहुवचन-वां रै मूंडां सूं (सैं) लाल पड़ै है। रो, री, रा (सम्बन्ध कारक) रै साथै; जियां एक वचन-तेली रो बलद। बहुवचन-बलदां रो जोत। में, पै, नै (अधिकरण कारक) रै साथै; जियां- एक वचन-स्कूल में (पैं) पढणो पड़ै। बहुवचन-खेतां में (पै,नै) चिड़ी चिड़कल्यां नुकसाण करै। परसर्ग समेत अधिकरण कारक सूं अधिकृत सबदां में, जियां- म्हन ई गोद्यां लेल्यो। वो बारणै ऊभो है। करण कारक सूं अधिकृत संग्या सबदां मेंं; जियां- बाछड्यो तिसायां मर्यो। वो भूखां मरयो। विभक्ति वचन प्रत्यय उदाहरण पहली विभक्ति एक वचन रो राम रो बेटो। बहु वचन रा रामू रा बेटा। दूसरी विभक्ति एक वचन रा राम रा बेटा। बहु वचन रा राम रा बेटा। तीसरी विभक्ति एक वचन रा, रै रामरा बेटा में। सगली विभक्ति बहुवचन रा, रै र ामू रै बेटां में। स्त्रीलिंग सगली विभक्तियां दोनूं वचन री रामू री छोरी। रामू री छोर्यां। रामू री छोरी में।
रामू री चोर्यां में। |